करिश्मा से कोरोना तक,मिशन-2022

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कुमार राहुल

यह किसी करिश्मे से कम नहीं था, कि एक 47 सीटों  वाली पार्टी अचानक 320 सीट से अधिक जीतकर उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज होती है ।1997 से 2002 तक चली भाजपा की सरकार में 3 मुख्यमंत्री रहे हैं ,और 15 साल के इंतजार के बाद 2017 में योगी आदित्यनाथ भाजपा के मुख्यमंत्री बने ।लेकिन 2022 का चुनाव भाजपा के लिए नई चुनौती पेश कर रहा है ,चुनौती है… कोरोना काल ..अब तक दो लहर का सामना कर चुके योगी सरकार को चुनाव से पहले एक और कोरोना  की लहर का सामना करना है ।लॉकडाउन से उत्पन्न बेरोजगारी मुंह बाए खड़ी है। आर्थिक सूचकांक अपने न्यूनतम स्तर पर है ।ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी से हजारों घर तबाह हो गए हैं,हजारों लोगों ने अपनों को खोया है।गंगा में बहती लाशों को देखा है। ऑक्सीजन की कमी से अपनों को तिल तेल मरते देखा है, अपनों को खोने का दर्द 7 -8 महीने में भूल जाना आसान नहीं है ,क्योंकि लोगों ने देखा है कि किस तरह से covid को कंट्रोल करने में सरकार असफल रही.






कोरोना के कारण बहुत तरह का नुक़सान हुआ है ,जिसे कंट्रोल करने के लिए योगी ने खुद मोर्चा संभाला है ,क्योंकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी की ,कि यूपी में स्वास्थ्य व्यवस्था राम भरोसे है। इन दिनों 75 में से 40 जिले एवं ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने की निगरानी खुद सीएम योगी कर रहे हैं। चुनाव लगभग 8 महीने बाद है.. बीजेपी  अक्सर एक साल पहले ही चुनावी मोड में आ जाती है ..जैसा कि अन्य चुनाव की तरह बंगाल चुनाव मे  1 साल पहले की चुनावी तैयारी ,आपने टीवी न्यूज़ में देखा ही होगा ..मई 2021 के अंतिम सप्ताह में बीजेपी महासचिव   B.L.santosh का तीन दिवसीय दौरे से… मीडिया जगत को लगा  कि.. शायद यूपी चुनाव की तैयारी शुरू हो रही है, जबकि कोविड  की दूसरी लहर चरम पर थी ..और लगा कि शायद कुछ फेरबदल के संकेत भी है.. लेकिन जानकारों की माने तो 36% विधायकों ने साफ कह दिया, कि योगी को हटाया तो 2022 में पराजय निश्चित है। विडंबना यह है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को 64%..36% पर भारी लगने लगा है। भाजपा उस मुख्यमंत्री के नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रही है, इसके खिलाफ 64 प्रतिशत विधायक हैं ..ऐसे मैं अगर  ब्राह्मण ,कुर्मी, लोधी, राजभर, निषाद और जाट नाराज रहे तो रहे ।तरीका यह है, कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का बकाया दे देने से उसका गुस्सा पहले जैसा नहीं रह जाएगा। जतिन प्रसाद को कांग्रेस से भाजपा में लाकर विकास दुबे एनकाउंटर से पैदा हुए ,ब्राह्मण समाज के क्षोभ को कम करने की कोशिश की जा रही है.. क्योंकि यूपी में लगभग 11 से 12 प्रतिशत ब्राह्मण मतदाता है ..कोशिश ये भी की जा सकती है, कि किसी ब्राह्मण को उप मुख्यमंत्री बना दिया जाए.. फिर ..तिलक तराजू और तलवार ..के फार्मूले से बेड़ा पार किया जाए ।लेकिन यह भी हमें नहीं भूलना चाहिए ,कि कोरोना महामारी के बीच संपन्न हुए, पंचायत चुनाव में एक ओर सैकड़ों चुनाव कर्मी कोरोना के शिकार होकर स्वर्ग सिधार गए है। और भाजपा  को उनके गढ़ में समाजवादी पार्टी ने बड़ा जोर का झटका धीरे से दिया है.






बीजेपी को पंचायत चुनाव में काफी नुकसान उठाना पड़ा। तो क्या आने वाले असेंबली चुनाव में समाजवादी पार्टी चुनौती पेश करने जा रही है.. हमें यह नहीं भूलना चाहिए, कि भारतीय वोटर समझने लगे हैं ,कि  किस चुनाव में  कैसे वोटिंग करनी चाहिए। खास बात तो यह है ,कि योगी सरकार की कमजोरियों, खामियों के विरोध में ना ही समाजवादी पार्टी ,ना ही बहुजन समाज पार्टी ने , ना ही कांग्रेस पार्टी सड़कों में संघर्ष करती नजर आई ।प्रियंका गांधी ने 1 से 2 मौके में संघर्ष जरूर किया ,लेकिन वह संघर्ष काफी नहीं हैे उसी संघर्ष की बुनियाद पर काग्रेस पार्टी के नेताओं के अनुसार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी चुनौती बन कर उभरने वाली है ,क्योंकि उनके संघर्ष का सबूत है, कि 9000 मुकदमे जो पार्टी कार्यकर्ताओं पर कर दिए गए हैं। अब सवाल यह है, कि प्रियंका गांधी ,जिनकी पार्टी को 2017 असेंबली इलेक्शन में मात्र 6.3% वोट ही मिले, वह भाजपा जिन्हें 41 पर्सेंट वोट मिले ,को कैसे चुनौती देगी ,यह भी बहुत बड़ा सवाल है ,अगर ऐसा होता है तो, यह भी बहुत बड़ा करिश्मा होगा। बसपा 22.4 परसेंट वोट शेयर, सपा 22 %  वोट शेयर लेकर, अलग-अलग चुनाव लड़ने की स्थिति में ,भाजपा को अधिक दिक्कत आती नहीं दिख रही है। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए ,कि 1997 से अब तक कोई भी पार्टी लगातार 2 बार चुनाव नहीं जीत सकी है। यानी इस बार के असेंबली चुनाव में चुनौती सिंबॉलिक रूप से पार्टियां जरूर होगी,लेकिन असल चुनौती कोविड से परेशान, हताश जनता ही भाजपा को पेश करेगी ।






कयास यह भी लगाए जा रहे हैं ,कि केशव प्रसाद मौर्य को फिर से अध्यक्ष बनाकर, योगी के लीडरशिप में चुनाव लड़ा जाए ।क्योंकि पीएम मोदी की सरकार से  महामारी के कुप्रबंधन के कारण मिले दर्द को लोग शायद  भूलने को तैयार नहीं होंगे। और कोविड के कारण श्री नरेंद्र मोदी की छवि में जो गिरावट हुई है ,उसे ठीक करने की कोशिश की जा रही है ।इसलिए डीएपी खाद में 140% की सब्सिडी, पीएम किसान योजना की आखिरी किस्त के तहत 20667 . 75 करोड रुपए 95 करोड़ किसानों के खाते में डाले गए ।शहरी मध्यम वर्ग की अप्रसन्नता को पहचान कर तुरंत विभिन्न महंगाई भत्ते बढ़ाए गए, जिससे केंद्रीय क्षेत्र  में काम कर रहे 1.5 करोड़ कॉन्ट्रैक्ट और अनौपचारिक कामगारों को लाभ होगा ।इन सब के बावजूद प्रधानमंत्री को अब भी काफी सद्भावना हासिल है। लेकिन अगला साल निर्णायक साबित होगा ।क्योंकि जिन राज्यों में अब चुनाव होने हैं, उनमें भी कोविड की छाया रहेगी ।इन का सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश में रहेगा। लेकिन  RSS बिना शोर-शराबे के एक डेढ़ साल पहले से ही अपने ढेर सारे स्वयंसेवकों के साथ चुनावी राज्य में चुपचाप काम में लग जाती है । RSS के सरकार्यवाह (जनरल सेक्रेटरी) दत्तात्रेय होसबोले चुनावी मैनेजमेंट के माहिर माने जाते हैं, 2017 मे उत्तर प्रदेश चुनाव के 1 साल पहले से लखनऊ में रहकर बीजेपी को ग्राउंड लेवल में मजबूत करने की रणनीति बनाने में कामयाब हुए थे । इस बार भी 1 साल पहले से लखनऊ में डटे हुए हैं लेकिन इस बार जो चुनौती है वह कोरोना है ,और सभी जाति धर्म के लोग  इससे पीड़ित हुए हैं। और असेंबली चुनाव तीसरी लहर के बाद ही होना है..






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उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार है ।

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