तालिबान के भारतीय वेरिएंट ?

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राजेश दुबे

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद दिल दहलाने वाली तस्वीरे सामने आ रही है ।काबुल एयरपोर्ट पर हजारों की भीड़ जिनमे महिलाएं एवं बच्चे भी शामिल है देश छोड़ने के लिए मदद की गुहार लगा रहे है ।तालिबान के द्वारा काबुल सहित अन्य इलाकों में लोगों के घरों में कब्जा कर लिया गया है ।महिलाएं असुरक्षित हैं ,तालिबानियों के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही महिलाओं के घरों से निकलने पर पाबंदी लगा दी गई है।महिलाओं एवं पुरुषों को गोली मार देने का खौफनाक मंजर देख कर पूरी दुनिया सदमे में है ।

काबुल से जो तस्वीर निकल कर सामने आ रही है वो सभ्य समाज को झंकझोर देने वाली है ।एयरपोर्ट के बाहर हजारों लोग इस इन्तजार में खड़े हैं कि अमेरिका और NATO देशों की सेनाएं उन्हें देर सवेर रेस्क्यू करके अपने देशों में शरणार्थी बना कर ले जाएंगी ,लेकिन अभी तक की जो स्थिति है उसमे यह प्रतीत नहीं होता की अमेरिका या अन्य देश अफगानी नागरिकों को अपने देश ले जाएंगे. इन देशों ने एयरपोर्ट पर कब्जा सिर्फ इसलिए किया है ताकि ये अपने नागरिकों और सेनाओं को अफगानिस्तान से निकाल सकें ।






बावजूद कुछ भारतीय तालिबान के यार बन कर सामने आए है ।आतंकियों के मौत पर आंसू बहाने वाले तथाकथित लिबरलस का नया अवतार सामने आया है जिन्हे तालिबान के आतंकी स्वतंत्रता सेनानी दिखाई दे रहे हैं।बीते कई दिनों से तालिबान के भारतीय वेरिएंट का बयान खूब सुर्खियां बटोर रहा है। शायर मुनव्वर राना हो या फिर समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खलीलुर रहमान सज्जाद नोमानी या फिर स्वरा भास्कर इन लोगो के बयानों ने देश के राष्ट्रवादी नागरिकों को सोचने पर मजबुर कर दिया है की भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ऐसे जेहादी सोच वाले लोगो का क्या काम है ? बर्क को तालिबानी आतंकी आंदोलनकारी नजर आ रहे है जिन्होंने अपने मुल्क को आजाद करवाया है। नोमानी एक कदम आगे बढ़कर तालिबान को बधाई देने से नहीं चूकते ।

वहीं मुनव्वर राणा  तालिबानी लड़ाकों की तुलना महर्षि वाल्मीकि से करते है और कहते है की अगर वाल्मीकि रामायण लिख देते हैं तो देवता हो जाते हैं, उससे पहले वह डाकू होते हैं। राना का कहना है  कि इंसान का किरदार और इंसान का कैरेक्टर बदलता रहता है। हमें आज अफगानी अच्छे लगते हैं, दस साल बाद वह वाल्मीकि होंगे । इससे पहले मुनव्वर राना ने कहा था कि जितनी क्रूरता अफगानिस्तान में है, उससे ज्यादा क्रूरता तो हमारे यहां पर ही है। स्वरा भास्कर कहती है की ऐसा नहीं हो सकता कि हिंदुत्व आतंक से हमें फर्क नहीं पड़ रहा और तालिबान टेरर से एकदम चौंक जाएं और परेशान हो जाएं और हम तालिबान टेरर से बेफिक्र होकर हिंदुत्व आतंक से भी क्रोधित नहीं हो सकते।

हमारे मानवीय और नैतिक मूल्य अत्याचार करने वाले या अत्याचार सहने वाले की पहचान पर आधारित नहीं होने चाहिए। स्वरा को हिंदुत्व जो की एक जीवन पद्धति है जिसने दुनिया को जीने की राह दिखाई , उसमे आतंक नजर आता है । इन बयान वीरों को तालिबान का क्रूरतम चेहरा नजर नहीं आता जिनके भय से हजारों महिला ,पुरुष ,बच्चे घर छोड़ कर कहीं अन्यत्र शरण लेने के लिए काबुल एयरपोर्ट के बाहर जिंदगी से जद्दोजहद कर रही है ।इन्हे यह भी नजर नहीं आता की जिस बच्चे को एक मां ने 9 महीने तक पेट में पाला उसे अमरीकी सैनिकों के तरफ वहीं मां उछाल दे रही है ,ताकि किसी तरह उनकी जान को बचाया जा सके ।भारत के इन तालिबानी वेरिएंट को बस भारत में डर का माहौल नजर आता है ,बाकी पूरी दुनिया में कहीं भी कुछ हो उसमे इनकी सहर्ष स्वीकृति रहती है। इन कथित तलीबानी समर्थकों का चेहरा आज पूरी तरह देश के सामने उजागर हो चुका है ।इसलिए जरूरत है ऐसे तालिबानी सोच वाले लोगो को कानूनी रूप से सबक सिखाए जाने की ताकि कुछ भी बोलने से पहले ये सौ बार पहले सोचे । 






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