कुमार राहुल
अक्सर सुबह-सुबह ही साइकिल में बैठ पीछे कैरियर में एक बैग टिकाए हुए निकल पड़ते हैं और इतनी तेजी से साइकिल हाकते हुए निकलते मानो उनकी कहीं दुकान हो और सुबह-सुबह माल बिक्री कर उन्हें बड़ा फायदा होने जा रहा है । दरअसल वह जब भी तेजी से जाते हुए दिखते हैं मतलब स्पष्ट होता है कि किसी न किसी अस्पताल में कोई अज्ञात रोगी या दुर्घटना में जख्मी व्यक्ति को उनका इंतजार है ।
क्योंकि प्रमोद भाई आएंगे तो चाहे सरकारी अस्पताल में या मेडिकल कॉलेज में पूरी जवाबदेही के साथ उनका इलाज करेंगे । समाज समाज सेवा का उन पर जुनून सवार था । सुबह से शाम तक दौड़ते ही रहते थे । कई बार चिलचिलाती धूप में पुलिस के साथ मिलकर घंटों यातायात को व्यवस्थित करने में लगे रहते ,कई बार बेतरतीब गाड़ी चलाने वालों से उलझ भी जाते हैं ।कई बार तो उनकी हरकत पागलों वाली से दिखती कुछ लोग आज भी उसे पागल जैसा ही समझते ।
इसलिए उनके अपने सहपाठी और बिरादरी के लोग भी उनसे नजर बचाकर निकल जाते । लेकिन प्रमोद अग्रवाल ने आज तक किसी से नजरें नहीं फेरी । अब तक की जिंदगी में हजारों लोगों को खून का इंतजाम करवाया और उनकी जान बचाई कई बार तो लगातार कई महीनों तक खुद का खून देकर भी लोगों की जान बचाई ।
जबकि मेडिकल साइंस के हिसाब से 3 महीने में एक ही बार खून दान दिया जा सकता है ।लेकिन उन्हें अपनी परवाह तो कभी रही ही नहीं ना ही ऐसे सामाजिक कामों के लिए उन्होंने फोटो खिंचवाई ना किसी को बताया है कि वह समाजसेवी है । प्रमोद तो बस एक फकीर था ना तो उसे दाम चाहिए ना ही नाम प्रमोद अग्रवाल जिस बिरादरी से आते हैं वहां कई पैसे वाले एक छोटे से सामाजिक काम कर अखबारों में छा जाते हैं और समाजसेवी के नाम से नवाजे जाते हैं । लेकिन प्रमोद को अखबार के अंतिम पेज के कोने में भी कभी जगह ना मिली मैं बचपन से उन्हे देख रहा हूं उनका बचपन तंगहाली में गुजरा ।
लेकिन दिल के धनी प्रमोद ने अपने पास सहायता मांगने आए किसी मरीज को यह आभास नहीं होने दिया कि उनकी जेब खाली है समाज में ऐसे अच्छे लोग विरले ही पैदा होते हैं और ऐसे अच्छे लोगों की जरूरत शायद ऊपर वाले को भी है । इसलिए प्रमोद अग्रवाल को लगभग 55 साल की उम्र में ही ऊपर वाले ने बुला लिया ।प्रमोद चले गए लेकिन उनकी यादें जिंदा रहेंगी ।