किशनगंज /प्रतिनिधि
उद्यानिकी अनुसंधान केन्द्र,किशनगंज के पादप कार्यकी विभाग के कनीय वैज्ञानिक डा. मुकुल कुमार ने किसानों के बीच नींबू के फलों के फटने के कारण व बचाव के उपाय बताए ।
नींबू के पौधे लगाने के लगभग 5 साल बाद किसान फल लेना शुरू कर देते है अगर पौधों कि उचित देखभाल की गई हो । अक्सर किसान नींबू कि फलों में फटने वाला बिमारी से परेशान रहते हैं।
जिसके कारण बाजार में नींबू कि भाव भी अच्छा नहीं मिलता है।
फल फटने का कारण
कभी कभी यह देखा गया है कि फल पकने से पहले फटने लगते है और इस कारण बहुत सी फसल खराब हो जाती है और इनका कोई मूल्य नहीं मिलता। वैसे तो जब यह बीमारी दिखाई दे तब भी इसका इलाज किया जा सकता है जिससे यह आगे बढ़ने से रुक जाती है। परन्तु अगर पहले से ही ध्यान रखा जाए तो इसे रोका जा सकता है। नींबू में यह समस्या निम्न कारणों से होती है –
वातावरण में अचानक बदलाव यह रोग मई – जून माह में अधिक पाया जाता है जिसका कारण अचानक अधिक गर्मी के बाद बारिश होने पर वातावरण में नमी बढ़ना है क्योंकि फलों का छिलका वातावरण में हुए इस बदलाव को सहन नहीं कर पाता और फल फट जाते है।
अधिक गर्मी कई राज्यों में अप्रैल से लेकर जून तक बहुत गर्मी पड़ती है जिसमें अधिक तापमान के साथ साथ गर्म हवाएं भी चलती है और वातावरण में नमी की कमी हो जाती है जिससे पौधों में पानी की मात्रा में बहुत कमी हो जाती है । नींबू के फलों का छिलका इस कमी को सहन नहीं कर पाता और फल फट जाते है।
पोषक तत्वों और सूक्ष्म तत्वों की कमी कम्पोस्ट खाद का कम और यूरिया का अधिक मात्रा में प्रयोग भी पौधों में आवश्यक पोषक तत्वों का संतुलन बिगाड़ देता है। कई किसानों के अनुभव से पता चला है कि नींबू के पौधों में यूरिया और फास्फेट के अलग अलग उर्वरक के स्थान पर डीएपी का प्रयोग उत्तम है जिसमें पोटाश की मात्रा मिलाकर उपयुक्त पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है।
बोरोन नींबू के पौधों के लिए बहुत आवश्यक सूक्ष्म तत्वों में से एक है। इसकी आवश्यकता फल और बीज बनने में बहुत महत्वपूर्ण है। इसकी कमी फलों के फटने को दूसरा मुख्य कारण है। इसके अतिरिक्त ज़िंक, कैल्शियम और जिब्रालिक एसिड अन्य मुख्य सूक्ष्म तत्व है जो नींबू के पौधों और फलों के विकास में आवश्यक होते है।
समुचित सिंचाई प्रबंधन नींबू के पौधों के विकास में अधिक पानी की आवश्कता नहीं होती परन्तु पानी की कमी भी नहीं होनी चाहिए। पौधों में गर्मी में नाली द्वारा पानी देने से भी फलों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसके लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि पौधों के आस पास पानी नहीं ठहरे परन्तु नमी बनी रहे।
उपाय
वातावरण में अचानक बदलाव से फलों के फटने पर बोरोन 1 ग्राम / लीटर और चिलटेड ज़िंक 2 ग्राम / लीटर का स्प्रे फायदेमंद होता है। अगर फल फटने लगे है तो इसके स्प्रे से रुक जाते है। इसके साथ अगर 1 ग्राम / लीटर कैल्शियम नाइट्रेट भी स्प्रे में मिला दे तो अच्छे परिणाम मिलते है।
बोरोन और ज़िंक का प्रत्येक दो से तीन माह में फूलो का समय छोड़कर स्प्रे करने से इस समस्या को रोका जा सकता है। बोरोन के स्थान पर सुहागा 4 ग्राम / लीटर का भी प्रयोग कर सकते है परन्तु इस पहले गर्म पानी में घोलना पड़ता है।
■अप्रैल, मई और जून माह में जिब्रेलिक एसिड 10 मिली ग्राम / लीटर का स्प्रे करने से इस समस्या में लाभदायक पाया गया है।
■इन सबके स्थान पर आप माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का भी प्रयोग कर सकते है।
■बड़े बागों में पश्चिम दिशा में बड़े छायादार पेड़ लगाने से पौधों कि गर्म हवाओं से रक्षा की जा सकती है जिससे उनमें पौधों कि शाखाएं और फल तेज गर्म हवाओं से बचेंगे और बीमारी का प्रकोप काम होगा। इसके साथ साथ पौधों की जड़ों में मल्चिंग उनमें पर्याप्त नमी बनाने में सहायक होती है।
मुख्य पोषक तत्वो जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की उचित मात्रा के साथ समुचित मात्रा में सड़ी गोबर की खाद भी आवश्यक है। जहां तक हो सके नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए यूरिया की जगह डीएपी का प्रयोग करें।
साल में चार बार कम से कम बोर्डो मिश्रण अथवा कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का स्प्रे अवश्य करें। जनवरी, जुलाई, अगस्त और सितंबर माह में इसका प्रयोग करने से उत्तम परिणाम मिलते है। साल में कम से कम दो बार, जून और अक्टूबर के अंतिम सप्ताह, में तने पर बोर्डो पेस्ट लगाना चाहिए। एक लीटर बोर्डो पेस्ट में 100 ग्राम अलसी का तेल मिलाने से यह बारिश में पानी लगने से तने से छूटता नहीं है।
उचित सिंचाई प्रबंधन नींबू कि बागवानी का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
नींबू के पौधों में पानी का भराव अधिक समय तक नहीं होना चाहिए परन्तु पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए क्योंकि इन्हे पानी की कम ही आवश्यकता होती है।
पानी देते समय यह ध्यान रखें कि पौधों के तने तक केवल नमी पहुंचनी चाहिए इसलिए आप ड्रिप को पौधे के तने से कम से कम 1 फीट दूर रखें।
गर्मियों में कम से कम तीसरे दिन पानी दे। आवश्यकता पड़ने पर रो़ज भी पानी दिया जा सकता है। पानी की मात्रा मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है। यहां यह ध्यान देने की बात है कि गर्मियों में पौधे के थाले में उचित नमी रहनी चाहिए।