दुकानदारी चमकाने के लिए जब नामचीन पत्रकार पाकिस्तान कि तस्वीर साझा करने लगे ।

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राजेश दुबे

महामारी के इस दौर में जब लाखो प्रवासी मजदूर दो जून की रोटी के लिए तरस रहे हो, तब आप अपनी पत्रकारिता को चमकाने के लिए देश में भ्रम की स्थिति पैदा करे यह ना सिर्फ पत्रकारिता के नियमो के विरूद्ध है ।बल्कि सामाजिक ताने बाने के भी विरूद्ध है ।देश के कुछ नामचीन पत्रकार अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए, सोशल मीडिया पर खुद की इमेज को चमकाने के लिए कुछ ऐसा काम कर रहे है ,जो पत्रकारिता के सभी मानदंडों के खिलाफ है ।देश आज महामारी से गुजर रहा है और इसे झुठलाया नहीं जा सकता कि श्रमिक वर्ग और मध्यम वर्ग के लिए यह बहुत ही कठिन समय है । सड़कों पर पैदल चलते मजदूर ,भूख से बिलखते बच्चे ,पिता की मौत के बाद बेटे का उसे मुखाग्नि तक ना दे पाना इसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है ।लेकिन अपनी पीठ थपथपाने और टीआरपी बढ़ाने के लिए विनोद दुआ जैसे वरिष्ठ पत्रकार के द्वारा सोशल मीडिया पर रोहिंग्या के पलायन की तस्वीर को साझा करना ,और बहुत क्रांतिकारी वाले पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेई द्वारा पाकिस्तान के बच्चो और महिलाओं के पाव की तस्वीर को साझा कर यह दिखलाना कि यह आज के भारत की तस्वीर है। यह मीडिया के विश्वसनियता को ना सिर्फ समाप्त करती है बल्कि किस एजेंडे पर ये पत्रकार चल रहे है उसे भी जाहिर करती है । सोशल मीडिया पर एक पत्रकार ने 1947 से आज के दिन की तुलना करते हुए एक खबर साझा कि तो यहां यह भी समझना होगा कि 1947 में देश का बंटवारा क्षदम राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया गया था ।जिसकी जद में देश के लाखों हिन्दू और मुसलमान आए जबकि यह महामारी है और इसका इलाज वैक्सीन ही कर सकती है ना कि किसी नेता के पास इसका इलाज है । ख़ैर बात हो रही है पत्रकारिता के गिरते स्तर की तो उसे ही समझिए की कोई भले ही बहुत क्रांतिकारी हो जाए लेकिन उसकी बाते भी सत्य होंगी इसपर विश्वास मत करे ।अपनी अक्ल का इस्तेमाल करे यह एक कठिन दौर है और सभी देश वासियों को मिल कर ही इस चुनौती से निपटने की जरूरत है ।ये झूठी सांत्वना दिखाने के चक्कर में कुछ भी कर सकते है ।

दुकानदारी चमकाने के लिए जब नामचीन पत्रकार पाकिस्तान कि तस्वीर साझा करने लगे ।

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