यह राम तुम्हारा ऋणी है !

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लेखक :सुशील दुबे 

माता सीता को आभास हो गया था कि प्रभु श्री राम लंका के समीप पहुंच चुके हैं। प्रकृति में चहुओर अलग सा उत्साह और उमंग दिख रहा था। 

माता सीता ने आभास होते ही मन ही मन प्रभु के चरणों का वंदन किया और विनती की कि हे नाथ, आपके उपस्थिति मात्र के आभास होते ही समस्त प्रकृति रोमांचित है, आनंदित है मानो समस्त सुखों की अनुभूति इस एक क्षण में ही प्राप्त हो गई हो, हे तारणहार, नारायण आपके इस स्वरूप को देखने को मन लालायित हैं। आपके चरण रज को माथे पर लगाने को मन उत्साहित हो रहा है। मेरे अश्रु धार आपके चरण धोने को आतुर हो उठी है । और आपके दिव्य तेज के साक्षी दसों दिशाएं और आज स्वयं सूर्यदेव भी परम् तेज़ युक्त हो कह रहे हैं की वो देखो मेरे राम आ रहे हैं।

हां प्रभु! आज मेरे राम आए हैं, सीता के प्रभु श्री राम। 

दशरथनंदन रघुपति राघव राजा श्री राम।

जन जन नायक मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ।

इतना कहते ही माता सीता ने धरती माता को साक्षी मानते हुए हाथ जोड़ कर कहा कि हे मां, आप सर्व साक्षी हो, और आपने मेरे प्रभु श्री राम को वैसे ही धारण किया है जैसे मुझे, आप साक्षी हो कि हम दूर होते हुए भी आपके गोद में साथ साथ बैठे हुए हैं । मां मेरा प्रणाम स्वीकार करो और मेरे स्वामी प्रभु श्री राम के चरण रज को मेरा वंदन और प्रणाम देना।

और इतना कहते ही माता सीता ने वही अशोक वाटिका से ही प्रभु श्री राम के चरणों में प्रणाम किया और धरती माता को साक्षी मानते हुए प्रभु श्री राम के चरण रज का माथे पर स्पर्श किया।

तभी स्वर्गलोक में बैठे समस्त देवताओं ने इस दिव्य क्षण का वंदन करते हुए माता सीता और प्रभु श्री को प्रणाम किया और कहा 

।। मंगल भवन अमंगल हारी

द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।।

वही दूसरी ओर वानर सेना के मध्य बैठे, आगे की रणनीति पर चर्चा करते हुए सहसा प्रभु श्री राम को अनुभूति हुई कि मानो माता सीता ने उनके चरणों का स्पर्श किया है। प्रभु श्री राम भावुक हो उठे और वहा से उठ कर दूसरी ओर चल दिए, जामवंत जी प्रभु श्री राम के इस मनोभाव को समझ गए और उन्होंने अनुज लक्ष्मण को रोक लिया, जो स्वयं प्रभु के इस अचानक उत्पन्न मनोभाव को देखकर चिंतित हो प्रभु श्री राम के पीछे निकलने को तैयार हो गए थे।

व्याकुल और भावुक प्रभु श्री राम लंका की ओर निहारते हुए विह्वल हो उठे। उन्होंने मन ही मन सीता माता को प्रणाम किया और कहा कि हे प्राण प्रिये, अब निराश मत हो। तुम्हारे सतीत्व के तेज के बल से युक्त होकर ही मैं आज इस महाभिमानी नीच रावण की लंका को नष्ट करुंगा।

तुम्हारे अश्रुओ के तेज से रावण जैसे अधर्मी के समस्त पुण्य नष्ट हो चुके है। हे सीता! तुम अनंत युगों तक अनन्त स्त्रियों के गर्व का कारण बनोगी, तुम्हारे इस संघर्ष का ऋण यह दशरथ पुत्र किसी भी तरह से नही चुका सकता। तुमने समस्त स्त्रियों के मर्यादा और तेज को बल दिया है। 

यह लंका द्वीप भी अभी तक तुम्हारे धैर्य और सतीत्व के बल पर ही टिका हुआ है, अन्यथा स्त्री हरण कर उसे कैद करने वाले स्थान को यह समुद्र देव स्वयं लील लेते।

हे प्राणेश्वरी। तुम्हें न तो मैं कोई रानी जैसा सुख दे पाया, न ही तुम्हें कोई राज सत्ता, इस अभागे को क्षमा करना सीता, अगर यह दशरथ पुत्र अपने पिता को दिए गए वचनों का पालन कर पाया तो इसका आधार तुम ही हो , तुमने आगे बढ़ कर इस वचन को पूर्ण करने के लिए मेरे सामर्थ्य को दृढ़ किया।

मुझे तो उस दृश्य की कल्पना मात्र से ग्लानि हो रही है की तुम्हे हर सुख देने का वचन लेनेवाला राम तुम्हारे सम्मुख कैसे उपस्थित हो पाएगा।

इस अभागे को क्षमा करना देवी, 

यह राम तुम्हारा ऋणी है।

यह अयोध्या तुम्हारी ऋणी है 

यह कण कण धरती की 

यह बूंद बूंद जल के 

यह क्षण क्षण आते जाते 

हर एक स्वास तुम्हारी ऋणी है

यह राम तुम्हारा ऋणी है।

इतना कहते ही भाव विभोर प्रभु श्री राम ने धरती माता को साक्षी मानते हुए सीता माता को प्रणाम किया और जोर से हुंकार भरते हुए सेना को आदेश किया, कूच करो लक्ष्मण ,इस लंकेश को अब मरना ही होगा।

प्रभु श्री राम के इस हुंकार से आसमान में बिजली गरजने  लगी, समस्त देवलोक कांप उठा ,समुद्र देव स्वयं लंका को डुबोने के लिए आतुर हो उठे। दीपक के रुप में उपस्थित अग्नि देव स्वयं रावण को नष्ट करने के लिए ऊंचे लपेटे में प्रज्वलित होने लगे।

समस्त वानर सेना के अंग अंग में मानो विद्युत भर चुका हो। ऐसे भीषण दृश्य को देख हनुमान जी ने प्रभु को प्रणाम किया और आगे की लड़ाई के लिए तैयार हो उठे।

फोटो साभार :इंटरनेट

यह राम तुम्हारा ऋणी है !

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