रणविजय (किशनगंज)
शारदीय नवरात्र का त्योहार प्रारंभ है। पूजा अर्चना को लेकर मंदिरों एवम पूजा पंडालों में माता के दरबार में उपासकों की भीड़ उमड़ने का सिलसिला शुरू है। यूं तो किशनगंज की पावन धरती पौराणिक और ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों के लिए जाना जाता है। जिले में हर एक मंदिर का अपना अलग महत्व और इतिहास है उनमें से कुछ मंदिरों का इतिहासकाल इतना पुरातन है कि उनकी प्रसिद्धि और भव्यता सैकड़ों वर्ष बाद आज भी बरकरार हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर है सार्वजनिक दुर्गा मंदिर पौआखाली, जो मनोकामना सिद्धि के लिए प्रसिद्ध हैं। यही कारण है कि सच्चे मन से सैकड़ों मील दूर दराज से आए श्रद्धालु दुर्गापूजा में माता के दरबार में हाजिरी लगाकर मनवांछित फल की प्राप्ति करते हैं।
ढाई सौ वर्ष पुराना इतिहास है मंदिर का:
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान पूर्णिया रियासत के राजा रहे पृथ्वी चंद लाल ने मंदिर की नींव रखी थी। राजा साहब का तब यहां कचहरी कार्यालय हुआ करता था, जिस वजह उनका यहां आना जाना होते रहता था। राजा साहब के द्वारा ही सर्वप्रथम मंदिर में दुर्गापूजा का अनुष्ठान प्रारंभ किया गया था। पहले मिट्टी और टीन के शेड से बने मंदिर में पूजा अर्चना होती थी किंतु, बाद में जन सहयोग से मंदिर का पक्का निर्माण हो गया।
बांग्ला और मैथिली पद्धति से होती है पूजा अर्चना:
इस ऐतिहासिक मंदिर की एक खास बात यह कि मंदिर के पुरोहित बांग्ला और मैथिली दोनों ही पद्धति से पूजा अर्चना संपन्न कराते हैं। चूंकि, प्रारंभिक काल से ही यहां सुरजापुरी बांग्ला भाषी लोगों का मंदिर में दुर्गापूजा को लेकर बढ़ चढ़कर भागीदारी रहा है एवम मंदिर के पुरोहित मैथिल ब्राह्मण समाज से होने के कारण तथा हिंदी भाषी श्रद्धालुओं के आस्था और भावनाओं का ख्याल रखते हुए दोनो ही पद्धति से पूजा संपन्न किया जाता है, जो दो अलग अलग संस्कृतियों के आस्था संगम का अद्भुत प्रतीक है।
एक ही परिवार के मूर्तिकार प्रतिमा का करते हैं निर्माण:
कई दशकों से मंदिर में पूजा के लिए मूर्ति बनाने का जिम्मा चपाती गांव के मूर्तिकार सूरत लाल और उनके परिवार पर है। कालांतर में एक आध बार बंगाल और बिहार के अन्य स्थान के मूर्तिकार मूर्ति निर्माण किया है किंतु, स्थाई तौर पे सूरत लाल मालाकार ही मंदिर के लिए मूर्ति का निर्माण करते हैं।
बंगाल बिहार नेपाल से आते हैं श्रद्धालु:
यहां दुर्गापूजा उत्सव को देखने और आनंद लेने के लिए दशहरा पर्व के दिन बिहार बंगाल और पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से श्रद्धालुगण आते हैं। दशहरा के दिन ऐतिहासिक मेला ग्राउंड में मेला ग्राउंड स्थित दुर्गा मंदिर के आसपास शानदार मेले का आयोजन होता है। मेले में आदिवासियों के द्वारा पारंपरिक नृत्य और गायन आकर्षण का केंद्र होता है।
संधि पूजा और बलिप्रथा को लेकर उमड़ती है भीड़:
मंदिर में महाअष्टमी तिथि को संधि पूजा एवम नवमी तिथि को पाठा बलि प्रदान के वक्त मन्नत अदाएगी और चढ़ावे को लेकर श्रद्धालुओं की काफी संख्या में भीड़ उमड़ती है। यहां हिंदू तो हिंदू मुस्लिम समाज से भी लोग माता के दरबार में मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात मन्नत अदाएगी के लिए पहुंचते हैं जिस कारण यह मंदिर सांप्रदायिक सद्भावना का भी प्रतीक है।
पूजा समिति जोरशोर से तैयारियों में जुटा:
मंदिर प्रांगण में भव्य पंडाल आकर्षक लाइट और सुरक्षा व्यवस्था समेत श्रद्धालुओं के लिए तमाम प्रबंधन को लेकर पूजा समिति के अध्यक्ष कुलाल सिन्हा, उपाध्यक्ष राजू रावत, सचिव सुधीर यादव, सचिन साह, पुष्कर साह, रौनक महतो, शिवा ठाकुर, अभिषेक सिंहा, विशाल सिन्हा, ऋतिक ठाकुर इत्यादि युवा तनमन से योगदान दे रहें हैं।