
किशनगंज /दिघलबैंक /घनश्याम सिंह
भले ही आज हम 21 वीं सदी और हमारा देश विकासशील देशों की श्रेणी में हो पर दिघलबैंक प्रखंड क्षेत्र का एक गांव ऐसा भी है जहां तक पहुँचे के लिए चचरी पुल का सहारा लेना पड़ता है।
प्रखंड मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर सिंघीमारी पंचायत के कनकई नदी पार के करीब तीन हजार की आबादी वाले गांव पलसा,बलवाडांगी, डाकूपाड़ा,बैधनाथ पलसा, मंदिरटोला गांव देश की आजादी के 75 सालों बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। यहां आज भी लोग बांस की बनी चचरी पुलों एवं पकडंडी कच्ची रास्तों पर चल रही हैं।
प्रत्येक वर्ष बाढ़ पानी के मार झेल रहें कनकई नदी पार भारत नेपाल सीमा पर स्थित ये गांव जहां पहुँचने के लिए एक भी पक्की सड़क हैं लोग आज भी पकडंडी गड्ढ़े भरे कच्ची सड़कों पर चलने को मजबूर हैं। पंचायत के पूर्व मुखिया राजेन्द्र प्रसाद सिंह,ग्रामीण मदन मोहन सिंह आदि लोगों ने अपने गांव की सड़कों की दुर्दशा के बारे में बतातें है कि गांव की जिंदगी नावों चचरी पुलों के सहारे चल रही है ना ही गांव में कोई पक्की सड़कें हैं या कोई सुखसुविधा के लिए अस्पलात या फिर पीने के लिए शुद्ध पानी। गांव की हालत को जिला प्रशासन से अवगत कराने के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर कईयो बार आवेदन दिया गया पर इस दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं दिख रहा है।
लोगों की माने तो चुनाव के समय को छोड़ बाकी दिनों में जनप्रतिनिधि तो किया प्रशासन के लोग भी नदी और चचरी पुल को देख नदी पार से ही लौट जाते है। स्थानीय लोग बतातें है कि इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाना होता है तो नदी से होने वाली परेशानियों को देख वे लोग नेपाल जाकर डॉक्टर को दिखाने में बेहतर समझते हैं।
कनकई नदी है सीमावर्ती गांव के लिए सबसे बड़ा बाधक।
भारत नेपाल सीमा पर बसे इन क्षेत्रों से होकर गुजरने वाली कनकई नदी हीं इस क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ा बाधक बन गया है। नेपाल की पहाड़ियों से निकलकर क्षेत्र में बहने वाली कनकई के पानी में पिछले कई वर्षों से नेपाल द्वारा अत्यधिक पानी छोड़े जानें से बाढ़ जैसी स्तिथि उत्पन्न हो जाती हैं। जो भी सड़कें पुल पुलिया,बांध बनते हैं उसे नदी का पानी अपने साथ बहा ले जाती है।