मिट्टी के दीपक की बढ़ी मांग
किशनगंज /सागर चन्द्रा
दीपावली के मौके पर देश वासियों द्वारा चाइनीज सामान का बहिष्कार का मन बना लेने से इलाके के कुम्हारों के चेहरे खिल उठे हैं। उनके थम से गए चाक ने भी रफ्तार पकड़ ली है। वर्षों बाद दीपावली के मौके पर अच्छी कमाई होने की आश ने उनमे नई उमंग का संचार कर दिया है।स्थानीय सुभाष पाल कहते हैं कि बचपन से ही इस पुस्तैनी पेशे से जुडा हूं। परंतु विगत कई वर्षों से दीये की मांग लगातार घटती जा रही है। नतीजतन दूसरों के घरों को रौशन करने वालों के घर अंधेरा सा छा गया है।
परंतु इस वर्ष स्थिती विपरीत है। दिपावली के नजदीक आ जाने के कारण पुरा परिवार मिट्टी के दीये के साथ साथ अन्य पूजन सामग्री बनाने के लिए दिनरात मेहनत कर रहा है।मांग अधिक होने के कारण बाहर से भी कारिगरों को लाया गया है। मौसम के मेहरबान होने से भी नई उम्मीद की किरण भी जाग उठी है। हालांकि उन्होंने कहा कि बढती महंगाई से उनका यह पुस्तैनी धंधा भी अछुता नहीं है।
सामान की बढती कीमत व हाडतोड मेहनत के बाद भी उतनी कमाई नहीं हो पाती है कि परिवार का भरण पोषण भी ठीक ढंग से कर सकें। कच्चे सामान के मुल्य में भारी इजाफा होने के बावजुद स्थानीय बाजार में मिट्टी के बने बर्तनों व दीयों की कीमतों में कुछ खास बृद्धि नहीं हुई है। सिर्फ दीया की बात करें तो 100 दीया बनाने में 80 रूपये की लागत आती है,जबकि बाजार में एक से डेढ़ रूपया प्रति दीया बेचना उनकी मजबुरी है। उन्होंने कहा कि आधुनिकता की इस अंधी दौड ने दीये की लौ को फीका कर दिया था।
दीपावली के मौके पर दीपों की जगह चाइनीज रंगबिरंगी बल्बों व झालरों ने ले ली है। कीमत में सस्ते होने व बिजली के सुलभ होने के कारण प्राय: लोग अपने घरों व प्रतिष्ठानों को बिजली की रौशनी से रौशन करने लगे हैं। दीपावली के मौके पर दीया जलाना तो मात्र परंपरा ही बन कर रह गई है। सिर्फ पर्व त्योहार में ही कुम्हारों के साथ साथ मिट्टी के बने बर्तनों की पूछ रह गई है।
नतीजतन नई पीढी इस चाक कला से पुरी तरह से अनभिज्ञ ही बनी हुई है। उन्होंने कहा कि पुर्व के दिनों में इस धंधे से 25 परिवार जुडे थे, परंतु मेहनत के अनुपात में कमाई ना होने से आधे से अधिक परिवारों ने इस धंधे से मुंह मोड लिया है। जबकि अगली पीढी ने तो इस कला से दूर ही रहने का मन बना लिया है।
परंतु इस दीवाली स्थानीय लोगों के रूख को देख एक नई आश जाग उठी है। शहर के बाजार में चीन निर्मित सस्ते रंगबीरंगी झालरों की मांग में कमी आ जाने से इस वर्ष दीये की अच्छी बिक्री की आस जरूर जग उठी है।