अतिथि संपादक/प्रवीण गोविन्द
सुपौल : लोकतंत्र में कोई जाने या न जाने भूख की परिभाषा रोटी जानती है। एक तरफ कोरोना है दूसरी तरफ भूख। भगवान न करे कि कोई कोरोना या भूख से मरे। लेकिन विधि का विधान आप-हम टाल भी तो नहीं सकते। लॉकडाउन में गरीब कैसे रह रहे हैं, जो रोज कमाते थे, रोज खाते थे। ऐसे लोग किस स्थिति-परिस्थिति में रह रहे हैं, यह वही जानते हैं। आप इनलोगों के घर पर जाइए आपको साक्षात गरीबी का साक्षात्कार होगा। लोगबाग कलेजे पर पत्थर रखकर अपनों से दूर विभिन्न प्रदेशों का रुख अख्तियार करते हैं,भला कौन नहीं चाहता कि परिजनों के साथ रहें। लेकिन; पापी पेट के लिए लोगबाग परदेस का रुख अख्तियार कर लेते हैं। प्रायः महाजन से कर्ज लेकर ही मजदूर तबके के लोग परदेस जाया करते हैं। कोरोना का कहर के बीच मजदूर तबके के लोग अपने -अपने घर वापस लौट रहे हैं। जहां उनके पुश्तैनी डीह हैं, कुल देवी-देवता हैं। जो उनके गांव-घर की रखवाली किया करते हैं। कई लोगों ने भरे दिल से बताया कि चलिए अपनी धरती पर तो मरेंगे! मतलब ऐसे लोगों को अभी से ही आने वाले कल की चिंता सता रही है। शायद उन्हें इस बात का आभास हो गया है, या हो रहा है कि कोरोना से बच भी गए तो फिर रोटी-भात (भूख) से कब तक बच सकते। वे जानते हैं कि आखिर सरकार कब तक मुफ्त की रोटी खिलाएगी।
1930 की महामंदी ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ से भी खराब हो सकते हैं हालात
इसी बीच WHO ने चेतावनी दी है कि कोरोना कभी खत्म नहीं होगा। हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना के नए मामलों को रोकने के लिए हमें बहुत सावधान रहना होगा। WHO की महामारी विशेषज्ञ मारिया वान केरखोव ने ब्रीफिंग में कहा है कि हमें अपने दिमाग में यह बिठा लेना चाहिए कि इस महामारी से बाहर निकलने में अभी कुछ और समय लगेगा। इससे पहले कई वैज्ञानिक इस बात को लेकर चेतावनी जारी कर चुके हैं कि कोरोना वायरस अपना रूप बदल रहा है जो पहले से ज्यादा खतरनाक हो सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना का यह नया रूप अपने वास्तविक रूप से कहीं ज्यादा संक्रामक हो सकता है। रिपोर्ट में इस बात की भी चेतावनी दी गई है कि तेजी से फैलने के अलावा यह वायरस लोगों को इतना कमजोर बना सकता है कि उन्हें दोबारा इंफेक्शन भी हो सकता है। कोरोना वायरस के मामले के कम्प्यूटर विश्लेषण पर आधारित विश्लेषण में हर बार यही पाया गया है कि कोरोना का नया स्वरूप पुराने पर हावी हो चुका है। खैर, बताया जा रहा कि हालात 1930 की महामंदी ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ से भी खराब हो सकते हैं।
फूंक-फूंककर कदम उठाने की जरूरत
बहरहाल, क्या होगा यह तो फिलवक्त समय के गर्भ में है, स्थिति वाकई सतर्कता गई और दुर्घटना हुई वाली है। लोगों के लिए फूंक-फूंककर कदम उठाने की जरूरत है। जरूरी चीजों को हासिल करने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है और ये सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में संकट और भी बढ़ने से इन्कार नहीं किया जा सकता। सभी को एक साथ कई मोर्चों पर लड़ने की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक शीर्ष अधिकारी ने चेतावनी दी है कि संभव है कि कोरोना वायरस हमारे साथ ही रहे। एक प्रेस ब्रीफिंग में डॉक्टर माइकल रेयान ने कहा कि हो सकता है कि यह वायरस कभी दूर ना जाए। उन्होंने कहा कि वैक्सीन के बिना पर्याप्त मात्रा में इम्यूनिटी बढ़ाने में लोगों को कई साल लग सकते हैं। खैर, इनसबों के बाद भी हम इसे गंभीरता से नहीं लेकर अपने हाथों अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हैं। एक तरफ जहां कोरोना की इस लड़ाई में डॉक्टर, अस्पताल कर्मी, पुलिस, मीडिया कर्मी, सफाई कर्मी, बैंक कर्मी दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, लॉकडाउन का अनुपालन के लिए पुलिस और प्रशासन पूर्णतः गंभीर है वहीं आज की तारीख में भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो लॉक डाउन का पालन नहीं कर रहे हैं। आप यह क्यों नहीं सोचते कि आपके बाद परिजनों का क्या होगा?
कलेक्टर महेंद्र कुमार, एसपी मनोज कुमार सहित कोरोना योद्धाओं को सलाम
बताया जा रहा है कि हो सकता है कि यह वायरस हमारे बीच एक और स्थानीय वायरस बन कर रह जाए, ठीक वैसे ही जैसे कि एचआईवी जैसे अन्य रोग जो कभी खत्म नहीं हो सके, लेकिन इनके प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं। वैसे कोरोना से बचने के लिए अब तक कोई वैक्सीन या दवा नहीं बन सकी है। अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए पूरी दुनिया अब लॉकडाउन खोलने पर विचार कर रही है। इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारी ने चेतावनी देते हुए कहा है कि *COVID-19 हमारे आस-पास लंबे समय तक रह सकता है और यह भी हो सकता है कि यह कभी ना जाए। अभी की स्थिति में यही कहेंगे कि प्रशासन व सरकारी निर्देशों का पालन कीजिए। सुपौल के कलेक्टर महेंद्र कुमार, एसपी मनोज कुमार सहित हम उन तमाम योद्धाओं को सलाम करते हैं जो दुःख की इस घड़ी में लगातार सड़कों पर दिख रहे हैं।