खिलाड़ियों …..हम शर्मिंदा हैं!

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कुमार राहुल की कलम से

खिलाड़ियों …..हम शर्मिंदा हैं! शर्मिंदा ..इसलिए कि जहां नेताओं की सभाओं को आयोजित करने के लिए लाखों करोड़ों खर्च किए जाते हैं ! वहीं युवाओं की खेल प्रतिभा को निखारने के लिए एक पैसा खर्च करने को कोई तैयार नहीं है ।उन सभाओं में बड़ी तादाद युवाओं की होती है , युवाओं को उम्मीद होती है ,कि हमारे नेता हमारे भविष्य को संवारने की हर संभव कोशिश करेंगे ।

अब चाहे युवाओं को भविष्य खेलकूद की दुनिया में क्यों ना दिखता हो ।लेकिन बिहार जैसे राज्य में युवाओं को खेलकूद की दुनिया में भविष्य बनाने की बातें सोचना भी नहीं चाहिए। क्योंकि बिहार में बहार है ,और खिलाड़ियों के लिए प्रयास बेकार है । मामला TMBU भागलपुर के कबड्डी खिलाड़ियों का है, छत्तीसगढ़ ,बिलासपुर विश्वविद्यालय में चल रही अंतर विश्वविद्यालय कबड्डी टूर्नामेंट में बिहार के खिलाड़ियों की जो फजीहत हुई ,वह कल्पना से भी परे है ।






तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी ने टीम तो भेज दी, लेकिन आयोजकों को टूर्नामेंट में एंट्री का प्रस्ताव ही नहीं भेजा। खिलाड़ियों ने आयोजकों से आरजू मिन्नत कर खेलने की अनुमति ली ,और जब मैच में उतरने की रिपोर्टिंग की,तो आयोजकों ने यह कहकर मना कर दिया, कि ड्रेस सही नहीं है। जर्सी फुटबॉल की है ,कबड्डी मे नहीं चलेगा । और पैंट घर में पहनने वाली है ।

खेल मैट में होनी है ,और किसी खिलाड़ियों के पास मैट शू भी नहीं थे ।टीएमबीयू की टीम को घोर लज्जा से बचाने को मुंगेर यूनिवर्सिटी और एस के university (दुमका ){दोनों यूनिवर्सिटी टीएमयू से अलग होकर बने हैं }के खिलाड़ी काम आए ।खिलाड़ियों ने मुंगेर की टीम से जर्सी ली ,और दुमका विश्वविद्यालय की टीम से मैच शू लिए ।आयोजकों ने एक बार फिर यह कहकर खेलने के लिए रोक दिया ,कि मुंगेर लिखित जर्सी में मुंगेर के खिलाड़ी खेलेंगे, तब टीएमबीयू के खिलाड़ियों ने जर्सी को उलट दिया.. जो सादा था, फिर आयोजकों ने आपत्ति की, कि जर्सी में टीएमयू का नाम और खिलाड़ियों का नंबर नहीं है।।


इसके बाद खिलाड़ियों ने चौक से खुद नंबरिंग की और इस फजीहत से और डाउन मोरल के साथ खिलाड़ी मैदान में तो उतरे, लेकिन टीम त्रिपुरा से मैच हार गए। खास बात यह है कि टीएमयू के रजिस्ट्रार डॉ निरंजन प्रसाद यादव को खिलाड़ियों के साथ हुई फजीहत का पता तक नहीं, तो वैसे भी बिहार के अधिकतर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर एवं उच्च पदाधिकारी को तो पढ़ाई से मतलब है ,ही नहीं ,ना खेल से ।कई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर आर्थिक अपराध ब्यूरो के रडार में है ,क्योंकि सारे उच्च अधिकारी यूनिवर्सिटी को बिजनेस का सेंटर समझने लगे है।

वहां खिलाड़ियों को कौन पूछने वाला है। छत्तीसगढ़ पहुंचे, टीएमबीयू के खिलाड़ियों ने टिकट, रहने, खाने का खर्च खुद ही उठाया। बिहार में जन्मे प्रसिद्ध खिलाड़ियों की प्रतिभा अन्य राज्यों में ही चमक पाई है। बिहार खेल प्रतिभाओं की कदर नहीं करता है। यहां झूठी राजनीति चमकाने वालों की ही कदर होती है।











नोट :तस्वीर इंटरनेट से प्राप्त की गई है। तस्वीर का वर्तमान लेख से कोई सरोकार नहीं है ।

खिलाड़ियों …..हम शर्मिंदा हैं!

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