कल शाम 4 बजे जब लिखना शुरू करना चाहा तो, मन-मस्तिष्क में कुछ भी नहीं था। कहीं कुछ सोच भी नहीं पा रहा था। लेकिन, रचना का प्लॉट हमारे आसपास ही होता है। मैंने यूँ ही फेसबुक खोला तो मेरी नज़र किसी मित्र के स्टेटस पर पड़ी। मैट्रिक परीक्षा के रिजल्ट के संदर्भ में उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट किया था – ‘पढ़ा लिखा साढ़े बाइस, नंबर आया चार सौ बाइस।’
बस, यहीं पर मेरे व्यंग्य का प्लॉट का सूझ गया .. और, यदि व्यंग्य ख़ुद पर हो तो ! …. तो, आप भी पढ़िए !
मैं एक शिक्षक हूँ, सभी शिक्षकों से क्षमा याचना सहित –
सरस्वतीचंद्र
व्यंग्य / डॉ. सजल प्रसाद
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अड़ोसी-पड़ोसी सब हैरान …! जितने नाते-रिश्तेदार, वो भी हैरान … ! और तो और, खुद माँ-बाप भी हैरान … ! सबके सब हैरान कि पढ़ाई-लिखाई से कोसों दूर रहनेवाला और दिनभर मटरगश्ती करने वाला अपने नाम के उलट सरस्वतीचंद्र आखिर मैट्रिक परीक्षा में फर्स्ट कैसे आ गया … !
किसी पड़ोसी ने फब्ती कसी – ” पढ़ाई-लिखाई साढ़े बाइस और नम्बर आया चार सौ बाइस। ” उस पर तुर्रा यह कि पड़ोसी ने चिढ़कर अपने फेसबुक स्टेटस को अपडेट करते हुए इसी फब्ती वाली लाइन को पोस्ट भी कर दिया। मोहल्ले के सभी फेसबुक फ्रेंड समझ गए कि गुलजारी लाल ने किसके बारे में यह लिखा है। कई लोग कहने लगे कि गुलजारी लाल ने खूब तीर चलाया। तो, कई ऐसे भी थे जो कह रहे थे -” गुलजारी लाल जलभुन कर राख हो रहा है, इसलिए ऐसा कह रहा है। “
एक पड़ोसी ने कोई रहस्य जैसे खोलते हुए अपनी टिप्पणी की – ” जरूर सरस्वतीचंद्र रात में पढ़ता होगा, जब सभी गहरी नींद में सो जाते होंगे। “
यह सुनकर सरस्वतीचंद्र के पिता भी आश्चर्यजनक भाव से सोचने लगे। फिर, मन ही मन कहा – ” मैं तो यही देखने के लिए बीते एक साल से रात में ठीक 12 बजे और 2 बजे उठ-उठकर देखता रहा। लेकिन, हर बार मुझे सरस्वतीचंद्र रात भर घोड़े बेचकर सोता मिला। “
ख़ैर, जो भी हो, रिजल्ट आ चुका था तो एक तरफ सरस्वतीचन्द्र की तारीफ़ में कसीदे पढ़े जाने लगे तो दूसरी ओर उसे सुबह-शाम ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर को भी क्रेडिट दी जाने लगी।
” यह मास्टर जरूर बहुत अच्छा पढ़ाता होगा, तभी हम सभी की नज़र में ऐसा भुसगोल विद्यार्थी भी मैट्रिक परीक्षा में फर्स्ट आ गया। ” – मोहल्ले के दूसरे पड़ोसी ने विशेषज्ञ टिप्पणी दी। अचानक ही ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर की मार्केट वैल्यू काफी बढ़ गई।
दूसरे बच्चों के गार्जियन इस टीचर के फोन घनघनाने लगे। सभी अपने बच्चों के लिए स्पेयर टाइम मांगने लगे और मुँहमाँगी मेहनताना देने का ऑफर भी देने लगे।
यह सब देख-सुनकर टीचर भी पुलकित हो रहा था।लेकिन, यह टीचर खुद हैरान भी था कि अव्वल दर्जे का मूर्ख सरस्वतीचंद्र, जो पास करने लायक भी नहीं था वो मैट्रिक में फर्स्ट कैसे आ गया ! उसने इस रहस्य का पता लगाने की ठान ली।
दूसरे दिन ही वह बोर्ड कार्यालय पहुंच गया और सरस्वतीचंद्र की सभी उत्तरपुस्तिकाओं की सर्टिफाइड कॉपी प्राप्त करने के लिए निर्धारित शुल्क के साथ अर्जी लगा दी। बोर्ड के अधिकारी ने अर्जी देखी और इस टीचर को जिला मुख्यालय जाने को कहा जहाँ एक मूल्यांकन केन्द्र में सभी जाँची गई उत्तरपुस्तिकाएं रखी गईं थीं।
दूसरे दिन ट्रेन पकड़कर टीचर अपने जिला मुख्यालय के मूल्यांकन केन्द्र में पहुंचा और बोर्ड के अधिकारी का लिखित ऑर्डर देकर सरस्वतीचंद्र की सभी उत्तरपुस्तिकाओं की सर्टिफाइड कॉपी उपलब्ध कराने को कहा।
यह लिखित फरमान देखकर अब मूल्यांकन निदेशक सकपकाए। सभी को-कॉर्डिनेटर को तुरंत तालाब किया गया। रजिस्टर से मिलान कर सरस्वतीचंद्र की विषयवार उत्तरपुस्तिकाएं निकाली गईं। उत्तरपुस्तिकाओं में लिखे गए उत्तर को देखकर मूल्यांकन निदेशक की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। प्रश्न कुछ और उत्तर कुछ और। उस पर फर्स्ट क्लास का नंबर।
आनन-फानन में कॉपी जाँचने वाले परीक्षकों को बुलाया गया। इन सभी परीक्षकों के भी पसीने छूटने लगे। गिरते-पड़ते सभी मूल्यांकन केन्द्र पहुँचे।
सभी सब्जेक्ट के परीक्षकों के आगे सरस्वतीचंद्र की कॉपी रख दी गई। अब सभी का तो काटो खून नहीं ! तबतक हेड एक्जामिनर भी बुला लिए गए थे। उन्होंने भी अपना सिर पीट लिया। हेड एक्जामिनर सकते में थे। सभी कॉपी में सरस्वतीचंद्र ने अपना नाम लिख-लिखकर पन्ने भर दिए थे।
ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर भी उत्सुकतावश सभी पेज पलटते गए। सारे पेज पर सभी लाइनों में सजावटी तरीके से लिखा था – ‘ सरस्वतीचंद्र सरस्वतीचंद्र सरस्वतीचंद्र सरस्वतीचंद्र सरस्वतीचंद्र ‘
न तो कहीं कोमा था और न ही फुलस्टॉप। ट्यूटर को इस बात पर भी हैरानी हुई कि इतना धैर्यपूर्वक उसके भुसगोल विद्यार्थी ने अपना नाम भी इतनी बार कैसे दोहरा-दोहराकर लिखा। लेकिन वे अपने विद्यार्थी के हैंडराइटिंग से वाकिफ़ थे, इसलिए उन्हें मानना पड़ा।
इसके बाद मूल्यांकन केंद्र के निदेशक ने गणित विषय के एक्जामिनर को पूछा – ” आपने इस कॉपी पर कैसे 60 नंबर चढ़ा दिए ? “
” सर ! क्या कहें आपको … रसोई गैस सिलिंडर का दाम जब 1000 रुपये के आसपास हो गया तो, माथा भन्ना गया सर ! इस महँगाई के दौर में जीना दुश्वार हो गया है सर ! उसपर आपलोग पूरा वाजिब होल्टिंग चार्ज भी नहीं देते हैं तो 60 किलोमीटर दूर से नदी पार कर आकर क्या खाक कॉपी देख पाएंगे … इसलिए देखिए नहीं सके कि ई कॉपी में का लिखा है का नहीं .. सो हमहूँ ई लइका को 60 नंबर आँख बंद करके दे दिए। “
अब बारी हिंदी के परीक्षक की थी। वह भी घिघियाकर बोलने लगे – ” जीवन में आपाधापी मची है .. दवाई-दारू करने में सारी सैलेरी खत्म हो जाती है सर जी ! नर्सिंग होम वाले घर के पेशेंट के इलाज के नाम पर दोनों हाथों से लूट रहे हैं …नीरस ज़िंदगी में रोमांस कहीं बचा ही नहीं है … कॉपी में केवल ‘सरस्वतीचंद्र’ लिखा देखा तो इसी नाम की पुरानी फ़िल्म याद आ गई और नहाती हुई बेहद खूबसूरत अभिनेत्री नूतन पर फिल्माया गया ‘चंदन सा बदन .. चंचल चितवन ..धीरे से तेरा ये मुस्काना .. मुझे दोष न देना जग वालों .. हो जाऊँ अगर मैं दीवाना’ शीर्षक गाना याद आ गया तो, मैंने खुश होकर कॉपी पर 60 नंबर बैठा दिए।
अबकी डायरेक्टर साहब ने सोशल साइंस के परीक्षक की तरफ सवाल उछाला – ” आप बताइए जनाब ! आपने कैसे नंबर दिए ! “
पहले से ही अपनी गलती मान बैठे सोशल साइंस के एक्जामिनर ने कुछ अलग अंदाज में कहा – ” डायरेक्टर साहब ! आप इस कॉपी पर दिए गए नंबर पर सवाल उठा रहे हैं न ! लेकिन क्या आपने यह सवाल उठाया कि क्लासरूम में कोरोना घुस जाता है, शादी-ब्याह में भी कोरोना की घुसपैठ हो जाती है , होली-ईद में भी कोरोना का प्रवेश हो जाता है लेकिन, चुनावी रैलियों में कोरोना घुस नहीं सकता है क्यों ? …. आखिर क्यों ? “
सोशल साइंस के एक्जामिनर की वॉयस मशीन का गियर बदल गया था और उनके बोलने की स्पीड फोर्थ गियर में हो गई थी।
” आप ही बताइए डायरेक्टर साहेब ! ये जो पड़ोसी राज्य में चुनाव के नाम पर ‘खेला होबे, खेला होबे, खेला होबे’ तो कहीं ‘विकास होबे, विकास होबे, विकास होबे’ की पुनरुक्ति हो रही है तो,उसे राज्य सरकार और केन्द्र सरकार काहे नहीं रोक रही है ? “
यह कहकर एक्जामिनर कहने लगे – ” जब शीर्ष महिला और शीर्ष पुरुष एक ही बात को पिछले कई माह से दोहरा सकते हैं तो, इस बच्चे ने अपने नाम को कई बार दोहरा लिया तो क्या गुनाह किया ! … आप ही बताइए क्या गुनाह किया ?
वस्तुतः सरस्वतीचंद्र ने राज्य सरकार की शीर्ष महिला और केंद्र सरकार के शीर्ष पृरुष से प्रेरित होकर किताबी ज्ञान की बजाय व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया तो उसे 60 नंबर मिलने ही चाहिए थे। “
डायरेक्टर साहब अब खुद उहापोह में फंस गए थे। किसी तरह उन्होंने संस्कृत के परीक्षक की तरफ देखा और पूछा – ” आप अपना पक्ष बताइए आचार्य जी ! “
शांत चित्त होकर आचार्य जी ने कहा – ” बालक ने अपने मन-प्राण से ध्यानयोग का अद्भुत परिचय दिया और माता सरस्वती का आराधक-पुत्र बनकर केवल ‘सरस्वतीचंद्र’ रटता-लिखता रहा … यह साधारण बालक नहीं है… अतएव मैंने प्रसन्न होकर आशीर्वाद स्वरूप इस बालक की उत्तरपुस्तिका पर 60 अंक अंकित कर दिए। “
यह सब देख-सुनने के बाद आखिर में जब सरस्वतीचंद्र के ट्यूटर ने सर्टिफाइड कॉपी माँगी तो, मूल्यांकन निदेशक ने हाथ जोड़ लिए। ट्यूशन पढ़ने वाले इस शिक्षक ने भी अपने साथी शिक्षकों का मान रख लिया और वे खाली हाथ लौट गए।
सम्प्रति :
एसोसिएट प्रोफेसर व
विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग
मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज (बिहार)।