व्यंग्य :माननीय का…हरण !
डॉ. सजल प्रसाद

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माननीय का…हरण !
व्यंग्य / डॉ. सजल प्रसाद
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सभी हैरत में थे कि ये क्या हो गया ! … सारा प्लान फेल हो गया था … ! बाजी पलट गई थी … सट्टा बाजार की हवा निकल गई थी … जैसे, हवा से भरे उड़ते गुब्बारे में कौवे ने चोंच मार दी हो … सिक्कों के दम पर सियासत को नचाने का दम भरने वाले शहर के धन्ना सेठों को जैसे लकवा मार गया था ! इसलिए विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने के बाद शहर में कई दिनों तक सन्नाटा छाया रहा।


अबतक किसी भी चुनाव के दौरान यही माना जाता था कि शहर में जिस पार्टी या प्रत्याशी के पक्ष में धन्ना सेठों की जमात हवा बनाएगी, वही हवा पूरे विधानसभा क्षेत्र में फैलेगी और इसी ‘स्पॉन्सर्ड कैम्पेनिंग’ के तहत मतदाताओं का ‘माइंड सेट’ तय करके मनमाफ़िक चुनाव परिणाम हासिल कर लिए जाएगा। लेकिन, इस बार यह यह स्ट्रेटजी फेल हो गई थी।


इस बार के विधानसभा चुनाव का युवा उम्मीदवार ग्रामीण पृष्ठभूमि का था और ज़मीन से जुड़ा हुआ था। ग्रामीण इलाके में उसकी छवि साफ-सुथरी थी। गाँव-देहात में मधुमक्खियों की तरह भनभनाते दुअनिया या दलाल की भीड़ और जोंक की तरह गरीब लाभुकों के हक की राशि को चूसने वालों से यह बंदा अलग तबीयत का था।

बीडीओ-सीओ और अन्य सरकारी अफसर भी इस युवा समाजसेवक के काम को मन-मसोस कर ही सही, परंतु जल्द कर दिया करते थे, क्योंकि उन्हें मालूम था कि इस युवा नेता के पीछे भीड़ चलती है और ख़ुदा न खास्ता ये नाराज हो गया तो लेनी की देनी पड़ जाएगी।


एक दिन डीएम साहब भी रूटीन ऑफिस इंस्पेक्शन के लिए जब ब्लॉक मुख्यालय पहुंचे थे तो यह युवा समाजसेवी भी समय लेकर डीएम साहब से मिला था। इस संक्षिप्त मुलाकात के फौरन बाद ही डीएम साहब ने बीडीओ-सीओ और अन्य अधिकारियों को ताक़ीद कर दी थी – ” यह युवक ‘विलेज बैकग्राउंड’ का है और ‘डाउन टू अर्थ’ है …. सुना है ये गरीबों की सेवा बहुत ईमानदारी से करता है .. इसका काम ‘प्रायोरिटी’ देकर सबसे पहले कर देना। “


” जी सर ! …. जी सर ! ” – कहते हुए बीडीओ-सीओ कमर तक झुक कर हुक्म की तामील करने का जैसे रियाज करने लगे थे।


यही युवा समाजसेवी इस बार के विधानसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को पटखनी देकर विधायक निर्वाचित हो गया था। प्रमुख दलीय उम्मीदवारों की सारी रणनीति फुस्स हो गई थी और तिकड़म भी काम नहीं आया था। जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम बाँट कर वोट हासिल करने की जुगत धरी की धरी रह गई थी।

चुनाव परिणाम आने के बाद जो विजय-जुलूस निकला, वह किसी ‘शिव-बारात’ से कम नहीं था। कहने का अभिप्राय यह कि चकाचक सफेद कुर्ता-पायजामा वाले स्वयम्भू नेताओं की अवसरवादी जमात इसमें नदारद थी। इस जुलूस में मैले-कुचले कपड़े धारण करने वाले गरीब लोगों की फौज थी।


शहर में निकले इस विजय जुलूस को देखकर धन-कुबेरों को काठ मार गया था। उन्हें लगा कि अब तो उन लोगों से सियासत की लगाम यह नवनिर्वाचित एमएलए छीन लेगा। कल तक जादू की छड़ी की मानिंद रुपये की थैली घुमाकर वोटरों को घुमाने के दिन लद जाएंगे। इन धन्ना सेठों के कपार पर चिंता की लकीरें उभर आईं थी और उन्हें ऐसा लगने लगा था कि अब तो गरीब लोग उनकी छाती पर चढ़कर मूंग दलेंगे।


इन्हीं चिंताओं में उमड़-घुमड़ रहे अमीरज़ादों ने अंततः एक योजना बनाई। इस योजना के तहत एक रात एक बड़े से महलनुमा घर के भव्य ड्राइंगरूम में गोलमेज मीटिंग आहूत हुई। मीटिंग में जब सब जमा हुए तो सबके आगे किसी कमसिन लड़की की पतली कमर के आकार वाले पारदर्शी पतले शीशे के जाम और ड्राई फ्रूट्स के प्लेट सज गए। ‘अंगूर की बेटी’ के उपनाम वाली हार्ड ड्रिंक्स की खूबसूरत विदेशी बोतलों से भरी ट्रे घूमने लगी। राउंड टेबुल में ऑटो मूवेबल ट्रे में भरी बोतलें बारी-बारी खुलने लगीं और जाम टकराने लगे। यहां ‘स्टार्टर’ भी था और ‘फिनिशर’ का भी इंतजाम रखा गया था।


कहते हैं जब आदमी बहुत खुश होता है तो पीता है या बहुत ग़मज़दा होता है तो, पीता है। यहां ग़म का सुरूर छा रहा था। फलस्वरूप कोई सेठ दहाड़ मार कर रो रहा था … कोई चुपचाप आंखों से गंगा-जमुना की धार बहा रहा था … कोई केवल सुबक रहा था … किसी को रोते-रोते हिचकी आ रही थी तो कोई आँखों की बजाय किसी दूसरे अंग से सोफे को गीला कर रहा था।


अचानक सोने-चांदी से भरी किसी तिजोरी की तईं एक भारी-भरकम आवाज़ इस गोलमेज सम्मेलन में गूंजी – ” सबसे पहले यह पता लगाया जाय कि इस युवा एमएलए की कमजोर कड़ी क्या है ? ” अनुभवी और उम्रदराज इस सेठ जी के इस ब्रह्म-वाक्य को सुनते ही सभी अमीरज़ादों के दिमाग की गुल हुई बत्ती भभक कर फिर जल गई थी।


जवानी की कमजोरी का पता लगाना बहुत मुश्किल काम नहीं है। इसलिए जवानी का लोहा पिघलाने के लिए आग की तलाश चुटकी बजाते हुए अगले दिन ही पूरी हो गई थी। सेठ जी ने धूर्तता के साथ मुस्कुराकर कर कहा भी – ” अरे ! जब विश्वमित्र की तपस्या भंग हो गई तो ये किस खेत की मूली है ! “


इधर, सरकार बनाने के लिए निर्दलीय विधायकों की जरूरत भी पड़ गई थी। जोड़-तोड़ का खेल शुरू हो चुका था। निर्दलीय एमएलए पर डोरे डाले जाने लगे थे। विधानसभा मे नंबर गेम बड़ा ही दिलचस्प हो रहा था। इसलिए राजधानी और अपने शहर का कनेक्शन जुड़ गया था। पार्टी मुख्यालयों से शहर के धन्ना सेठों के मोबाइल फोन की घण्टियाँ आधी रात के सन्नाटे में ज्यादा बजबजायी जा रही थी।


दिलचस्प यह था कि एमएलए को पटाने के लिए ठेके दिए जा रहे थे। शहर के धन्ना सेठों में भी गुट बन गए थे। एक गुट किसी खास दल के लिए सक्रिय था तो दूसरा गुट प्रतिद्वंद्वी पार्टी के लिए ठेका ले चुका था। सत्ता की सीढ़ियों पर पहले-पहल चढ़ने वाला सीधा-सादा युवा एमएलए अभी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया था। एक तरफ कुँआ था तो दूसरे तरफ खाई थी। उसे लगा कि अब तो फैसला लेना ही होगा।


मनुष्य की मानसिकता यही होती है कि जब दोनों तरफ खतरे होते हैं तो वह कम खतरे वाली डगर चुनता है। यहीं पर वह चूक जाता है। उसे वह कहावत याद नहीं रहती कि शेर अपनी राह खुद बनाता है। पुरानी कहावत है – ” लीक छोड़ तीनों चले, शायर, सिंह और सपूत। ” या फिर, नोबेल पुरस्कार विजेता और गीतांजलि के रचयिता गुरुवार रवींद्र नाथ टैगोर की वह अमर पंक्तियाँ – ” जोदी तोड़ डाक सुने केऊ ना आसे, तोबे एकला चोलो रे “
कल तक इस ईमानदार और सत्यवादी युवा एमएलए को न तो वह कहावत याद रही और न गुरु रवींद्र नाथ की पंक्तियाँ।

उसे यह भी याद नहीं रहा कि चुनाव आयोग ने अब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में ‘नोटा’ बटन का भी ऑप्शन दे रखा है। यदि कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है तो ‘नोटा’ का बटन दबा दीजिए।
विधानसभा में शपथग्रहण के अगले दिन ही शहर में एमएलए साहब का प्रथम आगमन था। शहर से अमीरज़ादों का एक दल पटना पहुँच चुका था और शिकार को फंसाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से जाल बिछा दिया गया था।

पटना से आने के लिए चार्टर्ड प्लेन उनके लिए खड़ा था। आने के पहले एक रात फाइव स्टार होटल में प्रायोजित डिनर पार्टी में एमएलए साहब शरीक हुए और यहीं से उनके दिल-दिमाग की किडनैपिंग शुरू हो गई। इसी रात राजधानी की सड़क पर एक झूठा हमला कराया गया और दूसरे दिन एमएलए साहब को जेड प्लस की सुरक्षा मिल गई।

संगीन धारी सुरक्षा गार्ड के सुरक्षा घेरे के बहाने अब एमएलए साहब को सशरीर किडनैप कर लिया गया था। वैसे, उनके दिल-दिमाग की किडनैपिंग तो पहले ही हो चुकी थी।
शहर में फूलों से लदी फॉर्च्यूनर गाड़ी में बैठाकर एमएलए साहब को जब धूल उड़ाती गाड़ियों के काफिले के साथ सड़को से गुजारा गया तो सुबह से सड़क किनारे खड़े गरीब वोटरों की आँखों के सामने गुबार छा गया था और अमीरों की योजना सफल हो गई थी।

सम्प्रति :
एसोसिएट प्रोफेसर व
विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग
मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज (बिहार)।

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