टेढ़ागाछ /किशनगंज/प्रतिनिधि
टेढ़ागाछ प्रखंड क्षेत्र के चिल्हनियाँ पंचायत के लोगों की जिदगी चचरी पुल के सहारे कट रही है। इससे लोगों को हमेशा आवागमन में खतरे की आशंका बनी रहती है। चचरी पुल कमजोर होने के कारण कई बार लोगों का भार सहन नहीं कर पाता है और लोग नदी के बीच में ही गिर जाते हैं। हालांकि इस नदी से प्रभावित लोगों को अधिकांश गांव में जाने के लिए चचरी पुल का सहारा लेना पड़ता है।
इस कारण देवरी, बेतबाड़ी, पंखाबाड़ी, कोठीटोला,चैनपुर,बिहार टोला,चिल्हनिनियाँ गांवों का विकास कार्य भी प्रभावित है। इन गांवों की एक बड़ी आबादी आज भी चचरी पुल के सहारे एवं पगडंडी कच्ची रास्तों पर चल रही है।इस क्षेत्र के लोग आज भी पगडंडी व गड्ढ़े नुमा कच्ची सड़कों पर चलने को मजबूर हैं। स्थानीय लोगों की माने तो जनप्रतिनिधि केवल चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे का भरोसा दिलाकर भोली-भाली जनता से वोट बटोरकर ले जाते हैं। वहीं चुनाव बाद जनप्रतिनिधियों द्वारा इन इलाकों का दौरा भी दुर्लभ हो जाता है। स्थानीय ग्रामीण मदन सिंह, संजय साह,भीम सिंह, विजय साह, विनोद कुमार यादव, खुशीलाल मंडल, रामनाथ सिंह,जगदीश प्रसाद सिंह, बच्चन देव सिंह,राशिद आलम,अनिरुद्ध प्रसाद साह, वीरेंद्र प्रसाद यादव,अतीक अंसारी,माया नंद मंडल, लतीफ उद्दीन ने बताया कि मेरी पूरी जिंदगी नावों, चचरी पुलों के सहारे खत्म हो गई। गांवों की इस हालत से जनप्रतिनिधियों एवं जिला प्रशासन को अवगत कराने के लिए बार बार ग्रामीणों के साथ सामूहिक आवेदन दिया गया, पर इस दिशा में अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब तो ये डर सताने लगी है कि कुछ महीनों में अगर इस ओर पुल नहीं बनाने का कार्य शुरू किया गया तो आने वाले बरसात में लोगों को फिर नदी में तैरकर ही अपने गंतव्य को जाना पड़ेगा। यहाँ के लोग बीमार परिजनों को खटिया पर ले कर नदी पार करते हैं।
रेतुआ एवं गोरिया नदी के दोनों पार चार हजार की आबादी गुजर बसर कर रही है।जिसमें सरकारी संस्थाओं में चार उत्क्रमित मध्य विद्यालय एवं प्राथमिक विद्यालय एवं प्रोजेक्ट उच्च विद्यालय घनीफुलसारा व पंचायत सरकार भवन हैं। वहीं चार आंगनबाड़ी केंद्र भी सुचारू हैं।
परंतु विद्यालय में शिक्षकों को भी आने-जाने में काफी परेशानी होती है, पर सरकारी सेवक होने के नाते तो शिक्षकों को आना ही पड़ता है। गौरतलब है कि इन क्षेत्रों से होकर गुजरने वाली रेतुआ एवं गोरिया नदी ही इस क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ा बाधक बन गया है।
जो भी सड़कें पुल पुलिया, बांध बनते हैं उसे नदी का पानी अपने साथ बहा ले जाती है। ऐसे में यहां के निवासी अपने आप को टापू की जिदगी जीने को मजबूर हैं। स्थानीय लोगों ने जिला पदाधिकारी का ध्यान आकृष्ट कराते हुए सुधि लेने की मांग की है।