पोठिया(किशनगंज)इरफान
पग-पग पोखर,माछ मखान के लिए प्रसिद्ध मिथिला की प्राचीन जीवनपद्धति पूर्ण वैज्ञानिक है।सभी पर्व-त्योहारों का खासा वैज्ञानिक सरोकार है।प्रत्येक उत्सव कुछ न कुछ संदेश देता है ।कहीं प्राकृतिक प्रकोप से बचाव का संदेश देता श्रावण महीने की पंचमी पर नाग पंचमी हो या फिर नवविवाहितों का लोकपर्व मधु श्रावणी।
बिहार के मिथिलांचल की खास व्रत मधुश्रावणी की शुरुआत सावन माह के पहले सोमवार से हुई।यह त्योहार सावन महीने के कृष्ण पक्ष पंचमी से आरंभ होकर शुक्ल पक्ष तृतीया को संपन्न होगा।बीते रविवार को नव विवाहिताओं ने नहाय-खाय किया।रविवार को नव विवाहिताओं ने गंगा स्नान कर पूजा पाठ करने के पश्चात अरवा भोजन ग्रहण किया।

अपने हाथों में मेंहदी रची।जिसके बाद सोमवार से खासकर मिथिलांचल का यह पर्व विधि-विधान के साथ प्रारम्भ हुआ।इस वर्ष यह पूजा 18 जुलाई से प्रारंभ होकर 31 जुलाई तक चलेगा।मालूम हो कि यह पर्व मैथिली ब्राह्मण और कर्ण कायस्थ समाज में सर्वाधिक प्रचलित है।मधुश्रावणी में नव विवाहिताएं सज-धजकर अपनी सखी-सहेलियों के संग फूल तोड़ने व (चुनने) जाती है।इसमें बासी फूल की पूजा होती है।
कथा कहनी कथा कहती हैं।जिसका श्रवण नव विवाहिता करती है।बताते चलें की मधुश्रावणी व्रत महिलाएं मायके में मनाती हैं।इस दौरान नवविवाहित 14 दिनों तक नमक या नमक से बनी कुछ भी नही खातीं हैं ओर जमीन पर सोतीं है।नवविवाहिता स्नेहा दिव्या ने बताया कि यह पूजा एक तपस्या के समान है।पूजा के दौरान सुबह-शाम नाग देवता को दूध लावा का भोग लगाया जाता है।
मधुश्रावणी पूजन का जीवन में काफी महत्व माना जाता है। सार्वजनिक दुर्गा मंदिर पोठिया के पुजारी अभय झा ने बताया कि नव विवाहिता पति के दीर्घायु के लिए मधुश्रावणी पूजन करती है।पूजन के दौरान मैना पंचमी,मंगला गौरी,पृथ्वी जन्म,पतिव्रता,महादेव कथा,गौरी तपस्या,शिव विवाह,गंगा कथा,बिहुला कथा तथा बाल वसंत कथा सहित 14 खंडों में कथा का श्रवण किया जाता है।गांव समाज की बुजुर्ग महिला कथा वाचिका होती हैं।
प्रतिदिन संध्याकाल में महिलाएं आरती,सुहाग गीत तथा कोहवर गाकर भगवान भोले शंकर को प्रसन्न करने का प्रयत्न करती हैं।पूरे पूजा के दौरान आस्था व श्रद्धा के साथ विषहारा की पूजा अर्चना की जाती है व गीत गाए जाते हैं।वही पुरुष चाहे कितनी भी व्यस्तता हो इस पूजा में जरूर शामिल होते हैं।