अररिया /अरुण कुमार
बिहार की माटी के लाल और हिंदी साहित्य जगत के आकाश पर ध्रुव तारे की तरह चमकने वाले अमर कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की पुण्यतिथि पर पूरे राज्य में याद किए गए, सोमवार को समाजिक कार्यकर्ता सह युवा राजद जिला महासचिव प्रभात यादव ने रेणु जी के तेलचित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दिया,कई जगहों पर प्रशासन, परिजन, जनप्रतिनिधि और साहित्यप्रेमी मौजूद थे।
मौके पर मौजूद प्रभात यादव ने कहा कि अपने उपन्यास ‘मैला आंचल’ से रातों-रात ख्याति अर्जित कर हिंदी साहित्य जगत में अपना विशेष मुकाम बनाने वाले कालजयी कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की कमी आज भी हमलोगो को महसूस होती है, साहित्यकारों के साथ-साथ उनसे जुड़े और स्थानीय लोग आज भी उन्हें अपने आसपास महसूस करते हैं,पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए कहा कि रेणु पूरी तरह सामाजिक परिवेश के लेखक थे, उनकी रचनाएं अपनेपन का एहसास दिलाती हैं अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत समाज से परिचय कराती हैं।
मानवीय संवेदनाओं को झंकृत करती हैं, झंझोरती हैं। रेणु की रचनाओं को केवल उनकी बौद्धिक क्षमता से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता है रेणु की रचनाएं इस लिए इतनी जीवंत हैं कि खुद रेणु ने उस जीवन को जिया था उन्होंने जो लिखा, उसे खुद भोगा था ग्रामीण जीवन को बहुत करीब से देखा और महसूस किया था वह संस्कृति और परिवेश उनके भीतर बसता था। फारबिसगंज जिले के औराही हिंगना में जन्म लेने वाले फणीश्वर नाथ रेणु का निधन 11 अप्रैल, 1977 को हो गया था उनकी पुण्यतिथि पर क्षेत्र के लोगों ने उन्हें याद किया। हिंदी साहित्य व आंचलिक भाषा के पुरोधा फणीश्वरनाथ रेणु देश- विदेश के कोने-कोने तक आंचलिक भाषा को पहचान दिलाने वाले इस क्रांतिधर्मा सर्जक की स्मृतियां और आवदान नई पीढ़ी के लिए इतिहास बन रही है। दरअसल रेणु ने गांव, खेत और खलिहान सहित सामाजिक सरोकारों से जुड़े जिन समस्याओं को उकेरा था वे गांव आज भी तलाशते हैं कि कोई तो आए।
चार मार्च 1921 को पूर्णिया (अब अररिया) जिले के औराहीं हिंगना में जन्मे अमर कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। देश की आजादी में क्रांतिकारी की भूमिका से लेकर नेपाली क्रांति एवं बिहार आंदोलन (जेपी आंदोलन) में इन्होंने अपना बहुमूल्य योगदान दिया। इसे भुलाया नहीं जा सकता है। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करने के कारण 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे लगभग दो वर्षो तक कारावास में रहे। सन 1950-51 की नेपाली क्रांति के सह नायक रहे रेणु ने कलम के साथ साथ बंदूक भी संभाली। मौके पर समाजिक कार्यकर्ता सह युवा राजद नेता प्रभात यादव सहित मयंक पासवान, चिक्कू यादव, कवि शाहिल राज मौजूद थे।