व्यंग्य /डॉ सजल प्रसाद
” देखिए … देखिए ! क्या छुपा रहे हैं आप ! … हम सब समझ चुके हैं .. ई सब नहीं चलेगा सर जी ! ” – जैसे ही यह आवाज़ गूँजी तो, सबकी नजर सबसे पीछे के बेंच पर दीवार से सटे कोने पर बैठे हिंदी विषय के धोती-कुर्ता धारी परीक्षक की ओर उठ गई।
परीक्षक महोदय का चेहरा भी ऐसे स्याह पड़ गया था, जैसे किसी ने उन्हें चोरी करते रंगे हाथों पकड़ लिया हो। उनके ठीक सामने खड़े थे अंग्रेजी विषय के सूटेड-बूटेड परीक्षक। अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर टिकाए। नजर उनकी टिकी थी हिंदी परीक्षक के बायें हाथ पर। और, उधर हिंदी परीक्षक अपने बायें हाथ की मुट्ठी को और जोर से भींचे जा रहे थे।
” क्या हुआ भाई ! आखिर क्या छुपाया जा रहा है ? ” – एक भारी-भरकम शरीर वाले परीक्षक ने देहयष्टि के अनुरूप ही भारी लहजे में सवाल दागा।
” हाँ.. हाँ ! क्या चल रहा है वहाँ ! ” – कैमिस्ट्री के परीक्षक ने उत्तर पुस्तिकाओं का बंडल डेस्क पर एक ओर सरकाते हुए पूछा।
” पहले ही दिन पहले ही आधे घंटे में क्या हो गया,भाई ! ” – इतिहास के परीक्षक ने माथे पर लटक आई अपनी जुल्फों को बड़े करीने से झटकते हुए प्रश्न किया।
” केऊ बोलबे ! की होये छे … की व्यापार ..! केनो तोमरा प्रोथोम दिन एई रोकोम कोरछो ” – बांग्ला विषय की सुन्दर महिला परीक्षक की कोयल-सी आवाज़ आई।
इस मीठी आवाज़ को सुनकर ही अंग्रेज़ी के परीक्षक ने अपनी चुप्पी तोड़ी। जैसे उन्हें इस सुन्दर महिला परीक्षक का ही तवज्जो पाना था।
” वेल मैडम ! वी रिसिव्ड वेरी गुड़ साइन फ्रॉम आवर डियरेस्ट हिंदी एक्जामिनर ऑन वेरी फर्स्ट डे। ” – जैसे किलकारी भरते हुए अंग्रेज़ी के सूटेड-बूटेड एक्जामिनर ने बंगाली महिला परीक्षक की झील-सी गहरी आँखों में डूबते हुए कहा।
” ताई ना की ! ” – महिला परीक्षक ने किसी किसी पुरानी हीरोइन की तरह दस सेकेंड में बीस बार अपनी पलकें झुकाते-उठाते हुए अंग्रेज़ी परीक्षक की तरफ देखकर अपनी किंचित आश्चर्यमिश्रित प्रतिक्रिया दी। दोनों की जिस तरह नज़रें मिलीं, उसे अन्य सभी परीक्षकों ने ताड़ लिया।
” ओ भइवा ! तनिक बतावल जाई कि का भइल ? ” – बायें हाथ की हथेली पर पुड़िया से थोड़ी खैनी और उस पर चुनौटी से चूना निकालकर रखने के बाद दाहिने हाथ के अंगूठे से उसे धीरे-धीरे मसलते हुए भोजपुरी विषय के परीक्षक ने अपनी बायीं आँख दबाते हुए अपनी जिज्ञासा बताई।
” शुभ मुहूर्त में शगुन हुआ है, भाई ! ” – किसी तरह अपनी आवाज़ संयत कर अबकी अंग्रेज़ी के परीक्षक ने कहा। उन्होंने समझ लिया था कि उसे और महिला परीक्षक को मार्क कर लिया गया है।
” कैसा शगुन, किसका शगुन ? ” – इस बार भूगोल के परीक्षक ने उनसे प्रश्न किया।
” डियर फ्रेंड्स ! इस बार के मूल्यांकन कार्य का शगुन ! “
” पर, कुछ और भी खुलासा कीजिएगा कि झुट्ठों कौनो बावरा नियन बकर-बकर करते रहिएगा। ” – भोजपुरी परीक्षक का धैर्य जैसे जवाब देने लगा था।
इस बीच हिंदी परीक्षक ने बड़ी सफाई से अपने कुर्ते की साइड वाली जेब में अपने बायें हाथ की मुठ्ठी घुसेड़ कर मुट्ठी ढीली कर दी थी।
लेकिन, इस पर अंग्रेज़ी के परीक्षक की पैनी दृष्टि पड़ गई और उन्होंने लगभग झपटते हुए हिंदी परीक्षक के कुर्ते की जेब में घुसपैठ कर दी और उसमें जो कुछ भी था उसे अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया।
इसके बाद वे हॉल के बीचों बीच आ गए और वहां रखे हाई डेस्क पर अपनी बंद मुट्ठी खोल दी। मुट्ठी से जो निकला, उसे देखकर सबकी आँखें फटी रह गईं।
यह वही चीज थी जिसे नोटबंदी के बाद पहली बार भारत देश में लांच किया गया था। जिसे पहली बार भारतवासियों ने देखा था।
गुलाबी रंग से सजी इस अनोखी चीज को देखकर लोगों ने यही समझा था कि सरकार एक तीर से दो शिकार करने का प्लान बनाकर बैठी है। वही .. जिसके बारे में सबसे तेज न्यूज चैनल की महिला एंकर ने कहा था कि इस पर खुफिया चिप्स लगी है, जिससे कालाधन का पता आसानी से लग जाएगा।
” आपकी याददाश्त और नज़र कमजोर हो गई हो तो, मैं बता दूं कि यह पूरे दो हजार का नोट है … टकाटक इंडियन करेंसी … वाओ ! दैट वाज़ एन हिस्टोरिक मोमेंट व्हेन दिस टू थाउजेंड नोट वाज लाऊँचड ! ” – अंग्रेज़ी के परीक्षक अपनी जबान पर उतर आए थे।
” हे हो ! तू ई अंग्रेजी बेसी नै झारियो .. काम क’रो बात बतइयो । ” – भागलपुर के रहने वाले एक परीक्षक ने तुनककर कहा।
मूल्यांकन केंद्र के इस बड़े हॉल में यह सब प्रहसन चल ही रहा था कि स्वयं हिंदी के धोती-कुर्ता धारी परीक्षक पीछे के बेंच से उठकर ब्लैकबोर्ड के ठीक सामने आए और कहा – ” बंधुओं ! ‘ सभी परीक्षक उनकी ओर देखने लगे थे। हिंदी परीक्षक ने जान-बूझकर ‘भाइयों-बहनों’ का सम्बोधन नहीं किया था।
” हाँ तो, बंधुओं ! मेरे अंग्रेज़ी के मित्र मेरी जेब से जो 2000 का नया नोट निकालकर आपको दिखा रहे थे, वो वस्तुतः मुझे एक परीक्षार्थी की उत्तरपुस्तिका से मिला है और यह बात मैं आप सभी को बताने ही वाला था कि मेरे अंग्रेज़ी के मित्र ने चुपके से दबा देने को कहा और आधा हिस्सा माँगने लगे। ” – हिंदी के परीक्षक ने पूरी बाजी बड़ी सफाई से पलट दी थी। अंग्रेज़ी के परीक्षक भकर-भकर उनका मुँह ताक रहे थे।
” अरे रे रे ! इहे सब बेईमानी करे के प्लान था क्या ! “
” शुरुए में फैसला हो गया था कि जिस परीक्षक के पास की उत्तरपुस्तिका से पैसा निकलेगा, उससे उसी दिन नाश्ता आदि मंगा लिया जाएगा और परीक्षार्थी को कम से कम फेल तो नहीं ही किया जाएगा। ” – बाहर दरवाजे के पास छुपकर खड़े मूल्यांकन केन्द्र के निदेशक ने सबकुछ देख-सुनने के बाद अंदर आकर अपना फैसला दोहरा दिया था।
” जी सर ! ” – सभी परीक्षकों ने सामूहिक रूप से ऐसे कहा जैसे किसी क्लास में बच्चे कह रहे हों।
उसी दिन उस दो हजार रुपये से सिंघाड़ा, कचौड़ी, मिठाई आदि मंगवाई गई और मूल्यांकन केंद्र निदेशक सहित सभी चालीस परीक्षकों ने छककर इसका स्वाद लिया।
एक चपरासी ने कमेंट किया – ” अली बाबा और चालीस चोर की फ़िल्म चालू है। ” हालांकि नाश्ता का डिब्बा उसे भी मिला था, पर उसमें परीक्षकों के मुकाबले एक मिठाई कम थी, इसलिए यह तीखा कमेंट आया।
अचानक तीन दिनों के बाद उत्तरपुस्तिकाओं से नोट झड़ने जब बंद हो गए तो, सभी चालीस परीक्षक आश्चर्य से भर गए।
एक परीक्षक ने कहा भी – ” जिस परीक्षा केंद्र से उत्तरपुस्तिकाएं आयीं हैं, वहां के बारे में यही इतिहास है कि परीक्षार्थी को पहले ही कह दिया जाता है कि पास करना है तो कॉपी में क्षमतानुसार नोट घुसा देना।
” इसलिए कॉपी से नोट का झरना बंद हुआ है तो, जरूर कोई बात है ! ” – दूसरे ने कहा।
” इसका पता लगाना चाहिए .. क्यों भाइयों ? ” – तीसरे ने कहा।
” हाँ ..हाँ .. जरूर पता लगाना चाहिए। ” – सामूहिक आवाज़ आयी।
उसी रात चार परीक्षक मूल्यांकन केन्द्र में चार दिशाओं से घुसे और उस भंडारगृह के पास पहुँचे तो महसूस किया कि अंदर कुछ खुटर-पुटर चल रहा है। बहुत कोशिश के बाद पुरानी दीवार में एक सुराख नज़र आया तो एक परीक्षक ने उससे अंदर झांककर देखा । उसकी आँखें जैसे फट गईं।
फिर, बारी-बारी सबने देखा। सभी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे। सबको यह लग रहा था कि ये क्या हो गया ! इतने में एक पांचवां परीक्षक भी पहुँच गया और पूछने लगा। सबने उसे सुराख दिखा दिया। उस पांचवें परीक्षक ने वही देखा, जिसे पहले चार ने देखा था …
… भंडारगृह के बीच में मूल्यांकन निदेशक बैठे हैं और एक-एक उत्तरपुस्तिका के एक-एक पेज को पलट-पलट कर देख रहे हैं और उसमें घुसाए-चिपकाए नोट को निकाल-निकालकर एक पॉलीथिन बैग में जमा कर रहे हैं .. !
दूसरे दिन इन पाँचों परीक्षकों ने अपने अन्य 35 परीक्षकों के बीच उक्त आँखों देखा हाल बारी-बारी सुनाया तो सब हतप्रभ रह गए। बंगाली महिला परीक्षक की एक्सपर्ट टिप्पणी आयी – ” एई ओन्याय सोहोन कोरा जाबे ना ! एका-एका लूट कोरते दोबा जाबे ना ! सोबाई के मिले इंकलाब-जिंदाबाद कोरते ही होबे ! “
यह सब सुनकर भोजपुरी परीक्षक ने कहा – ” धुर मरदे ! ई बंगालन त’अ हमनी के मुआ देबे के इंतजाम करत रहिल बा ! “
” ठीक कह रहे हैं आप ! चोरी-बेईमानी के माल में हिस्सा लेने के लिए कहीं आंदोलन होता है भला ! ” – गणित के परीक्षक ने अपनी राय दी तो, सभी ने सहमति में सिर हिलाया।
” आजकल के विद्यार्थी शिक्षकों को भ्रष्ट बनाने पर तुल गए हैं और यह हम सभी परीक्षकों को अब समझना ही होगा। ” – हिंदी के परीक्षक ने जब यह बात कही तो, अंग्रेज़ी के परीक्षक सहित सबने संकल्प लिया कि अब उत्तर के आधार पर नंबर दिए जाएंगे न कि नोट के आधार पर।
पर, दूसरे दिन यह सारा प्रकरण किसी अखबार के खोजी रिपोर्टर ने छाप दिया और अब उच्चस्तरीय जांच चालू है। देखना यही दिलचस्प होगा कि जाँच भी कहीं करेंसी नोट से प्रभावित न हो जाए !
सम्प्रति :
एसोसिएट प्रोफेसर व
विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग
मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज (बिहार)।