विशेष : कोरोना काल में चुनावी प्रचार का सशक्त माध्यम बन कर उभरा सोशल मीडिया

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बड़े से लेकर छोटे राजनैतिक दल के नेता सोशल मीडिया पर हुए सक्रिय

चंदन मंडल

कोरोना महामारी से उबरने के लिए देश में अभी भी कई तरह की गतिविधियों पर रोक है ।इसके बावजूद बिहार में राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इन दलों के नेता भले ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के कारण लोगों से दूरी बनाए हुए हैं, लेकिन इन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे पर निशाना साधना जारी रखा है।

अभी सोशल मीडिया सभी नेताओं के लिए एक वरदान साबित हो रही है। सोशल मीडिया पर सक्रिय विदेश में काम करने वाले लोग भी अपनी पसंद के प्रत्याशी के पक्ष में जमकर प्रचार कर रहे हैं। साथ ही विरोधी पर हमला भी फेसबुक के माध्यम से ही कर रहे हैं और अपना एक दूसरे के ऊपर मन की भड़ास निकाल लेते हैं।

अगर हमलोग करीब दो दशक पीछे जाकर देखें तो चुनावी सीजन में आंखों के सामने कार, बस या ऑटो में लगे झंडे, लाउडस्पीकर से प्रत्याशी को जिताने की अपील के साथ धुआंधार नारेबाजी और छोटे-छोटे प्लास्टिक या कागज के बिल्लों के लिए लपकते बच्चों वाली चुनाव प्रचार की तस्वीर जीवंत हो उठती है।

लेकिन अब यह सीन पूरी तरह बदल चुका है और इसका स्थान छह इंच के मोबाइल फोन के स्क्रीन ने ले लिया है । पिछले एक दशक में तो सोशल मीडिया चुनाव प्रचार अभियान का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। भारत में राजनीतिक दल सोशल मीडिया को प्रचार के प्रमुख साधन के रूप में अपना रहे हैं। शायद ही कोई राजनीतिक दल ऐसा होगा, जो इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अपनी बात रखने और प्रतिद्वंद्वियों के आरोपों का जवाब देने के लिए न कर रहा हो।

आज अधिकांश नेता और उनके समर्थक फेसबुक, वाट्सएप, ट्विटर या यूट्यूब जैसे माध्यमों से राजनीतिक दलों का अधिकाधिक प्रचार कर रहे है। इसके कई कारण हैं। सबसे पहले तो यह कि आज कोई ऐसा घर नहीं है जहां मोबाइल नहीं है, और शायद ही कोई ऐसा स्मार्टफोन हो जिसमें वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब नहीं हो। सोशल मीडिया की पहुंच पर तो किसी को संदेह ही नहीं।

इससे सटीक प्रचार माध्यम फिलहाल कुछ नहीं है। दूसरा इस प्रचार तंत्र में सूचनाओं का फ्लो काफी तेजी से होता है। पहल झपकते ही आप लाखों के बीच अपनी बात पहुंचा सकते हैं। तीसरा इस माध्यम से प्रचार करना अपेक्षाकृत सस्ता भी होता है। बस मोबाइल में इंटरनेट होना चाहिए। पोस्ट लिखा, हैशटैग किया और पहुंच गए टारगेट ऑडिएंस के पास।

प्रचार के पीछे जनसंचार का एक सिद्धांत (टू ल्स्टेप थ्योरी) काम कर रहा है। इसके मुताबिक, लोग जानकारी के लिए या विचारों के लिए सीधे जनसंचार के किसी श्रोत पर कम ही निर्भर रहते हैं और अपनी जानकारी समाज के ही किसी और व्यक्ति से लेते हैं।

विशेष : कोरोना काल में चुनावी प्रचार का सशक्त माध्यम बन कर उभरा सोशल मीडिया

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