इमरजेंसी के पचास वर्ष पूरे होने पर एक संस्मरण, डॉ सजल प्रसाद की कलम से ..सस्ती रोटी की दूकान और नसबंदी अभियान

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सस्ती रोटी की दूकान और नसबंदी अभियान ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
वर्ष 1974 से 1977। भारतीय राजनीति के इतिहास का यह कालखंड दुनिया की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए एक उदाहरण है। वर्ष 1974 में मेरी उम्र 11 वर्ष थी और 1977 में उम्र थी 14 वर्ष। जीवन के इस कालखंड में शारीरिक परिवर्तन एवं बायोलॉजिकल चेंज के साथ-साथ मानसिक परिवर्तन भी तेजी से होता है। मेरी स्थिति और मनःस्थिति भी इसी अनुरूप थी।

1974 से 1977 के इस अविस्मरणीय कालखंड में ‘सस्ती रोटी की दूकान’ और ‘नसबंदी अभियान’ मेरी यादों में बावस्ता है। यदि इमरजेंसी की बात होगी, तो स्वतः जयप्रकाश आंदोलन का जिक्र होगा। दोनों का संबंध बड़ा गहरा है। सब जानते हैं कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के कार्यकाल में व्याप्त मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और कुशासन के विरोध में बिहार से जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन शुरू हुआ था, जिसे ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का नाम दिया गया। पर, आज भी मुझे याद है कि उन दिनों इसे ‘जयप्रकाश आंदोलन’ के नाम से ही ज्यादा जाना गया।

अब बात ‘सस्ती रोटी की दूकान’और ‘नसबंदी अभियान’ की। ‘सस्ती रोटी की दूकान’ छात्र आंदोलन का हिस्सा थी और ‘नसबंदी अभियान’ इमरजेंसी का हिस्सा था। वर्ष 1974 से शुरू हुए छात्र आंदोलन का मैं एक दर्शक व श्रोता मात्र था। मेरे घर में मेरे चाचा स्व. विजय प्रसाद जयप्रकाश नारायण के पक्के अनुयायी के रूप में सक्रिय थे। स्वाभाविक रूप से आंदोलन की कई बातें मुझे याद हैं क्योंकि घर में भी चर्चा होती रहती थी। मेरे चाचा जी समाजवादी नेता व पूर्व सांसद लखन लाल कपूर, कटिहार के पूर्व सांसद युवराज सिंह,पूर्व सांसद तस्लीमुद्दीन, बद्री नारायण मंडल आदि बड़े नेताओं के साथ आंदोलन को तेज धार देने में लगे थे।

पर, मुझे याद है कि यह आंदोलन जब अपने उफान पर आया, तो उन दिनों मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज सहित पटना व मुजफ्फरपुर के कॉलेजों में पढ़ रहे मेरे मोहल्ले के कई छात्र यथा राजेश्वर बैद्य, माधव प्रसाद मोदी, राजेश प्रसाद साहा, अभय कुमार रामदास, ईश्वर चंद्र सोनार, शंकर प्रसाद साहा, रमेश प्रसाद साहा, अजय प्रसाद मोदी, प्रभु प्रसाद मोदी के साथ-साथ ओम प्रकाश साहा (पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष) छात्र आंदोलन में सक्रिय रहे थे। उन्हीं दिनों पटना के सुर्खरुं छात्र नेता रहे लालू प्रसाद भी किशनगंज आए थे और हमारे मोहल्ले के उक्त सभी छात्र नेताओं के साथ पूरा दिन गुजारे थे। जयप्रकाश नारायण भी आंदोलन के दौरान किशनगंज आए थे और यहाँ ऐतिहासिक रुईधासा मैदान में उनकी एक विशाल जनसभा हुई थी।

उन्हीं दिनों किशनगंज शहर के प्रसिद्ध गांधी चौक में जन सहयोग से आन्दोलनकारी छात्रों द्वारा ‘सस्ती रोटी की दूकान’ लगायी जाती थी। बाद में शहर के अन्य चौक-चौराहों पर भी ‘सस्ती रोटी की दूकान’ लगाई गईं। कालांतर में मुझे समझ में आया कि ‘सस्ती रोटी की दूकान’ के माध्यम से जहां एक ओर महंगाई का विरोध करना था, वहीं दूसरी ओर आम जनता को ‘जयप्रकाश आंदोलन’ अथवा ‘सम्पूर्ण क्रांति’ से सीधे जोड़ना था।

अब बात नसबंदी अभियान की। 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी। इमरजेंसी लगते ही मेरे मोहल्ले के कई छात्र नेता जेल में बंद किए गए। मेरे चाचा स्व. विजय प्रसाद भूमिगत हो गए थे और पूरे सीमांचल में बड़े विपक्षी नेताओं के साथ सक्रिय थे।

इमरजेंसी के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी द्वारा देश में शुरू किए गए नसबंदी अभियान की धमक किशनगंज में भी खूब थी।। मुझे अच्छी तरह से याद है कि ऐसी चर्चा तब होती थी कि प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारी दिए गए नसबंदी लक्ष्य को पूरा करने के लिए बूढ़ों व अधेड़ों सहित युवाओं को पकड़ कर जबरन नसबंदी कराते हैं। इसलिए उन दिनों अविवाहित युवक घर से निकलने में डरते थे। खैर, तत्कालीन इंदिरा सरकार के गिरने के बाद इमरजेंसी हटी, तो अविवाहित युवाओं ने राहत की साँस ली। वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार बन गई, पर व्यवस्था व सिस्टम में परिवर्तन नहीं हो सका।

■ प्रो.(डॉ.) सजल प्रसाद
यूनिवर्सिटी प्रोफेसर व अध्यक्ष
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मारवाड़ी कॉलेज,किशनगंज (बिहार)।

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