किशनगंज /विजय कुमार साह
टेढ़ागाछ के वेणु गढ़ में लगने वाले एक दिवसीय मेला की तैयारी पूरी हो चुकी है ।मेला को लेकर लोगो में जबरदस्त उत्साह दिखाई दे रहा है ।बता दे की दो सालो से कोरो ना की वजह से मेला नहीं लग पाया था लेकिन इस साल मेला लग रहा है जिसमे दूर दराज से बड़ी संख्या में लोग शामिल होने वाले है ।मेला को लेकर दुकानें सज चुकी है और दुकानदारों को अच्छी बिक्री होने की उम्मीद है।
मेले का है ऐतिहासिक महत्व
टेढ़ागाछ प्रखंड से 12 किलोमीटर जिला मुख्यालय 40 किलोमीटर दूर टेढागाछ प्रखंड के नेपाल की तरफ स्थित राजा बेणु से जुड़ा बेणुगढ़ का पौराणिक इतिहास चर्चा में रहा है।महाभारत काल में पांडवों के अज्ञात वास से भी क्षेत्र का गहरा रिश्ता रहा है। बेणुगढ़ में आज भी गढ़ के टीला एवं भग्नाविषेश राजा वेणु का मंदिर क्षेत्र के दोनों समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है ।
मुराद पूरी होने पर लोग देते है बलि
राजा वेणु के मंदिर में एवं गढ़ में विराट एक दिवसीय मेला 15 अप्रैल को आयोजन होता है! जिसमें दोनों समुदाय के लोग भारी संख्या में शरीक होते हैं। राजा वेणु के मंदिर में लोगों की इतनी अटूट आस्था है, कि निसंतान एवं रोगी की मुराद पूरी होने पर कबूतर, छागर की बलि देने वाले हजारों की संख्या में पहुंचते हैं ।180 एकड़ में फैला राजा वेणु का टीला आज खंडहर में तब्दील होकर अतिक्रमण का शिकार हो रहा है ।
राजा वेणु की ग्रामीण देवता के रूप में होती है पूजा
आज भी ऐसी मान्यताएं हैं, की गढ़ की रखवाली अदृश्य आत्माएं करती है गढ़ के पूरब दिशा में विशाल सूखा तालाब की मौजूदगी इन सब का आभास कराती है, यहां के लोग बेणु राजा को ग्रामीण देवता के रूप में सदियों से मान्यता देते आ रहे हैं! यहां से जुड़ी एक और पुरानी मान्यता को लोग आज तक स्मरणीय बनाए हुए हैं।
सूखे तालाब की है अदभुत मान्यता
जिसमें गढ़ के अंदर सूखे तालाब के संबंध में मान्यता है, कि तालाब के किनारे पान सुपारी पूजन करने से शादी-विवाह एवं अन्य अनुष्ठानों में बर्तन की मांग करने पर इस तालाब से कालांतर में पीतल के बर्तन की प्राप्ति एक चमत्कार के रूप में होती थी, जिस के उपयोग के बाद लोग वापस तालाब को समर्पित करते थे! पुरातत्व विभाग की निगाह से दूर बेणु महाराज की इस धरोहर को आज तारणहार की जरूरत है!



