कविता : आत्म सम्मान 

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प्रस्तुति /सुनीता कुमारी ,पूर्णियाँ बिहार

हर सम्मान से पहले, आत्म सम्मान जरूरी है। विधाता ने जीवन दिया, इस जीवन का मान जरूरी है ।

आत्मसम्मान के बिना ,राजा रंक बना फिरता है ।आत्मसम्मान से भरा रंक ,राजा की तरह जीता है ।

आत्म सम्मान यदि मरता है, इंसान मन से मर जाता है। निभाता है वह हर रिश्ता ,खुद मन से मर जाता है। 

 हर रिश्ते से बढ़कर रिश्ता, खुद से है खुद का होता हैं।आत्मा परमात्मा का धन है, सुरक्षा पहले है तन मन का।

 आत्मसम्मान से भरा यह मन ,हर रिश्ते में खुश रह लेता है, समर्पण रिश्तो में करने से पहले ,समर्पित खुद को करता है ।

आत्मसम्मान के बिना, मनुष्य पशु बन जाता है।गैरो को छलने से पहले,हरदिन खुद को छलता है।

 भोजन और जल की तरह। वायु और आयु की तरह ।आत्मसम्मान का सम्मान करे,संतोषप्रद हो जीवन ,इस जीवन का सम्मान करे






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