सार्वजनिक शौचालय के रहते खुले में शौच करने को मजबुर है ग्रामीण
सीमा क्षेत्र विकास योजना के अन्तर्गत कराया गया था निर्माण
किशनगंज /चंदन मंडल
पूरा प्रखंड ओडीएफ हो जाने के बाद भी सीमावर्ती पंचायत भातगाँव के गलगलिया बॉर्डर रोड पर लाखों रुपये की लागत से बना शौचलय करीब 2 वर्षों से अधिक समय से शोभा की वस्तु बन कर रह गई है। लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है । जिसके कारण विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
विशेष कर महिलाओं को और भी परेशानी होती है और इन्हें खुले में दुर जाकर शौच करना पड़ता है। सरकार के लाखों रुपये पानी में बहा दिए गए। स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार लाखों रुपये की लागत से शौचलय का निर्माण हुआ करीब 2 वर्ष पहले बना हुआ है, लेकिन शौचलय का लाभ आजतक लोगों को नहीं मिला रहा है।

लोगों ने कहा कि निर्माण के बाद से अबतक यहां कोई विभागीय संबंधित अधिकारी नहीं पहुचें हैं। जबकि कागजी मामले में निर्माण से जुड़ी जानकारी विभाग के अभियंता, संवेदक के हित में दे भी दिए होंगे। फिर भी विभाग अबतक शौचलय चालू कराने का कोई पहल करते नहीं दिख रही है। गौरतलब है कि सरकार शौचलय को लेकर काफी सक्रीय है,लेकिन सिस्टम बिल्कुल भ्रष्ट है।
भ्रष्ट सिस्टम के कारण सरकारी राशि का दुरुपयोग हो रहा है। स्थानीय लोगों ने बताया करीब 3 वर्षों से यह वीरान पड़ा हुआ है, यहाँ कोई संबंधित अधिकारी कभी नहीं आते हैं,जैसे मानो इस शौचालय से विभाग को कोई सरोकार नही है। मिली जानकारी के मुताबिक ठाकुरगंज विधायक नौशाद आलम के लोकार्पण में संवेदक रियाज अहमद के द्वारा सीमा क्षेत्र विकास योजना के तहत 10 लाख 62 हजार 5 सौ 63 रुपये की राशि से इस निर्माण कार्य को पूर्ण कराया गया था।
निर्माण कार्य पूर्ण हुए करीब तीन वर्ष गुजर गए मगर सीमावासियों को इसका लाभ नही मिल रहा। तीन वर्ष से शौचालय में ताला लटका हुआ है। और ताला लटका देखकर वहां के स्थानीय लोग बड़े मजे शौचालय के द्वार पर अपने – अपने घर के जलावन के लिए लकड़ी रख रहे हैं। बता दें की शौचलय का लाभ लोगों को नहीं मिलने से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
फिर भी आजतक कोई भी प्रखंड के अधिकारी, विभागीय लोग व किसी भी राजनीति दल के लोग इस पर कोई पहल नहीं की गई है। इस संबंध में स्थानीय लोगों में समाज सेवी मनोज गिरी,उपसरपंच मुरारी सहनी, अवधेश नायक,सुमन मिश्रा आदि ने कहा कि इस पूर्ण योजना को सुलभ शौचालय की तरह शुल्क निर्धारित करके किसी को जिम्मेदारी सौंप दी जाए तो सरकार अपने ओडीएफ के उद्देश्यों को पुरा करने में सफल हो जाएगी। अन्यथा ताला लटका यह शौचालय ओडीएफ की सरकारी परिकल्पना को मुँह चिढ़ा रही है।