- या देवी सर्व भुतेषु भक्ति रूपेण संस्थिता की ध्वनि गूंजते ही जागा शहर
- बंग संस्कृति में महालया का है विशेष महत्व
किशनगंज /सागर चन्द्रा
अंधकार को चीरती सूरज की पहली किरण, आसमान में स्वच्छंद विचरण करती चीडियों की चहचहाहट के साथ-साथ शहर के मंदिरों में लाउडस्पीकर से गूंजते महालया के श्लोक या देवी सर्व भुतेषु भक्ति रूपेण संस्था ने शनिवार को जहां शहर वासियों को नींद से जगा दिया। वहीं दूर्गा पूजा के आगमन की खुशी ने उनमें नई उर्जा का संचार भी कर दिया। हल्की ठंढ के अहसास के साथ शहरवासी अपने अपने घरों में टीवी और रेडियो से चिपक गये।
वीरैन्द्र कृष्ण भद्र की रोबीली आवाज, वाणी मल्लिक का स्क्रिप्ट व पंकज मल्लिक की म्युजिक में महिषासुर मर्दनी के पाठ ने ऐसा शमा बांधा कि लोग लगातार एक घंटे तक अपने टीवी व रेडियो से चिपके रहे। पूर्व पुरूषों को श्रद्धा तर्पण व देवी पक्ष की आगमन तिथि महालया के साथ सार्थक हो गई। बंगाल की सीमा से सटे रहने व शहर में बंग संस्कृति के घुले मिले रहने के कारण पूरा शहर शनिवार को भक्ति रस में डूबा नजर आया। मां दुर्गे के आगमन की खुशी को ले महिलाओं व बच्चों में विशेष उत्साह देखा गया।
ऐसी मान्यता है कि महिषासुर नाम के राक्षस के सर्वनाश के लिए महालया के दिन मां दुर्गा का आह्वान किया गया था। कहा जाता है कि महलाया अमावस्या की सुबह सबसे पहले पितरों को विदाई दी जाती है। फिर शाम को मां दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्वी लोक आती हैं और पूरे नौ दिनों तक यहां रहकर पृथ्वी वासियों पर अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं। महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखों को तैयार करते हैं।
दरअसल, मां दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले कारिगर यूं तो मूर्ति बनाने का काम महालया से कई दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं।महालया के दिन तक सभी मूर्तियों को लगभग तैयार कर छोड़ दिया जाता है। महालया के दिन मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें बनाते हैं और उनमें रंग भरने का काम करते हैं। इस काम से पहले विशेष पूजा भी की जाती है। महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दे दिया जाता है और वह पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं।
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