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मुई सुरजापुरी बेटी -मिली कुमारी

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सुरजापुरी कविता


मिली कुमारी (लेखिका,किशनगंज,बिहार )

मुई जन्म लिनू ते कारो मुखोत खुशी तऽ
कारो मुखोत उदासी छे!

क्यां बबा… मोर जन्मोत तुई खुश नी छिस?
क्यांं माथात हाथ दे बोठे छिस!

मो ते ऊपर वालार देन छि
सबारो मन इरा दुनियांर मेहमान छि!

आज घोरोत कई डा लोक खुश नी छे
क्यां कि पहले से मोर दूई रा बहिन छे!

मोर भई होइले ते सबकोई खुश छिलेन
ते क्यां आज कई डा लोक खुश नी छे!

ओ अच्छा… अब समझीनु
मोक ते बिलवाह हबे!

अपना धरम-करम तोक निभवा हबे
दान-दहेज दुआ हबे!

बस कुछू कोहबा चाहछि…
अपना दिलेर बात तोक समझुआ चाहछि!

‘मुई सुरजापुरी बेटी…
घोरेर शान, मोर बबार अरमान।

मोको इरा आसमानोत उड़वा दो
मोको मोर भाई लार मंदी कुछू बनवा दो।

सिर्फ शादी करना मोर पहचान नी
मोको अपना पहचान बनवा दो।

आज मोर कोई वजूद नी
मोको मोर वजूद कायम करवा दो।

एखुदी बोड़ो होनु तऽ सबारो मुखे सुन्नू
अब शादी कराये दे, अब शादी कराये दे।

मुई तऽ अभी अपना सपना पुरा करवार
पहला कदम ए उठाईनु।

क्यां मोर कदम पायल से बांधे दिलेन?
क्या मोर अतेक जल्दी शादी दिलाए दिलेन!

मुई लड़की छि तऽ की?
मोर सपना नी छे, अरमान नी छे!

मोको कुछू करवार मौका दो
मोको मोर भाई लार मंदी पढ़वा दो।

मुई सुरजापुरी बेटी…
घोरेर शान, मोर बबार अरमान।’

मिली कुमारी, लेखिका
(किशनगंज, बिहार)

मुई सुरजापुरी बेटी -मिली कुमारी

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