संवेदनहीनता

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निधि चौधरी


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नूर लिखूं, बेनूर लिखूं,
जीस्त नशे में चूर लिखूं।
नाते जल गए अग्नि कुंड में,
किसका यह कुसूर लिखूं।
बिच्छू पाले डंक सम्हाले,
कैसे उनको मस्तूर लिखूं।
ज़र्रे ज़र्रे दर्द ही पाया हमने,
क्या दर्द को अपने तूर लिखूं।
कलयुग का यह रूप भयावह,
कलयुग के कैसे दस्तूर लिखूं।

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