तैराकी की पाठशाला !अनकही दास्तां

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राजेश दुबे

कोशी प्रमंडल  में हर साल महानंदा,कोसी के साथ साथ उसकी सहायक नदियाँ कहर बनकर तबाही की अनकही दास्ताँ लिखती है ।ये नदियाँ अपनी उफनती लहरों में सबकुछ समाहित कर लेती है..और अपने पीछे दर्द की ऐसी कहानी छोड़ जाती है जिसकी घुटन ता-उम्र लोगो को महसूस करना पड़ता है ।मगर इन सब के बीच इन इलाकों में जहाँ सैलाब अपने सितम के शबाब पर होता है ।वहां जिंदगी बचाने की जद्दोजहद ने तैराकी की पाठशाला को जन्म दे दिया है .

महानन्दा, परमान, रतुआ, कंकई, मैची नदी के किनारे बसे गांव के बच्चे जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में लहरों से खेलकर बड़े होते है ।यहाँ के छोटे छोटे बच्चे लहरों से खेल कर ना सिर्फ  अपनी जिंदगी महफूज रखते है । बल्कि एक कुशल तैराक बनकर अपनो का सहारा भी बनते है ।पूर्णिया,किशनगंज,कटिहार  और आस पास के इलाके के लोग कोसी एवं महानन्दा की सहायक नदियों की वजह से हर साल कटाव और बाढ़ का दंश झेलते हैं ।

यही वजह है कि पैरों पर खड़े होते ही बच्चे नदियों को समझने और तेज धार को चीर कर आगे निकलने का हुनर सीखते हैं । जहाँ कोसी महानन्दा  की सीधी धार नहीं है वहां कोसी में उफान की वजह से उफनती सहायक नदियां कोसी,महानन्दा  का काम आसान कर देती हैं ।कहर बरपाने वाले इन नदियों में महानंदा,कनकई और कारी कोसी, परमान का नाम सबसे ऊपर है ।

ये नदियां हर साल सैकड़ों घर और हजारों जिंदगियां तबाह कर जाती हैं । हर साल कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है । लिहाजा गांव वाले भी तैराकी की पाठशाला का सबक सिखाना ज्यादा मुनासिब समझते हैं। छोटे छोटे बच्चे कभी कभी इस पाठशाला की सीख से बड़ा काम कर जाते है और ना सिर्फ अपनी जिंदगी बचाते हैं बल्कि दूसरे की जिंदगी को भी महफूज करते है ।

बच्चे खेल खेल में अच्छे तैराक बन जाते है ।लेकिन  व्यवस्था की कमी के कारण इनका हुनर उन बुलंदियों को नहीं छू पता जहां बड़े शहरों के बच्चे पहुंचते है ।संसाधनों की कमी और सरकार की अनदेखी से यह हुनर बस अपनी जिंदगी बचाने तक ही सिमट कर रह जाती है ।लेकिन अगर सरकार इस और हल्का भी ध्यान दे तो इन क्षेत्रों से भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के तैराक निकल सकते हैं और देश प्रदेश के साथ साथ अपने जिले का नाम रौशन कर सकते है ।

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तैराकी की पाठशाला !अनकही दास्तां

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