कुमार राहुल की कलम से
अक्सर ऐसा देखा जाता है ,कि लोग तोहफे की कीमत नहीं पूछते, न जानने की कोशिश करते हैं ।और ना ही दिए गए तोहफे लोग वापस लेते हैं। लेकिन यूक्रेन के मामले में यह बात बिल्कुल ही अलग है।सन 1237 में मंगोलों के आक्रमण से पहले तक यूक्रेन नामक देश का अस्तित्व मे ही नहीं था ।मंगोलों ने उसे तहस-नहस कर दिया था, जहां कजाक लोग रहने लगे ,जो यायावर और लड़ाके थे ।और मंगोलों जितना ही बरबर भी थे। यह इलाका जपोरिजियान सिच कहलाता था।
जो अनाधिकृत राज्य संघ की तरह था ।और आज की जो युक्रेनी पहचान है, यही उसके मूल में है। और जब रूस के शासक ‘जार’ तेजी से अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे ।तब यह क्षेत्र मास्को के जार के साथ जा मिला ।जब यह रूसी साम्राज्य तेजी से फैलने लगा तो उसने पोलिश, लिथुआनिया के बड़े इलाकों को अपने में मिला लिया ।और यूक्रेन प्रांत का हिस्सा बना दिया ।
और जब कम्युनिस्टों ने ‘जार ‘से सत्ता अपने हाथ में ली ,तो उन्होंने न केवल युक्रेन के पश्चिम में कुछ और पोलिश और दक्षिण में कुछ और रोमानियाई क्षेत्रों को जोड़ा बल्कि स्वयं रूस के भी एक बड़े हिस्से को उसे मिला दिया, जिनमें ओडेसा ,खारकीव,डोनेसक, दोनों प्रांतों सहित और दनाईपर नदी के पूर्व में मौजूद समस्त भूमि शामिल थी ।
वर्ष 1957 में सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव जो कि खुद यूक्रेनी थे ।यूक्रेन को क्रीमिया प्रायद्वीप भी दे दिया ।यानी आज हम जिस यूक्रेन को जानते हैं उसका 90% हिस्सा जार और सोवियत नेताओं के द्वारा उसे उपहार में दिया गया था।19वी र्और बीसवीं सदी में जैसे-जैसे यूरोपियन राष्ट्रवाद बढ़ता गया ,यूक्रेन ने भी भाषाई आधार पर यह भावना बलवती होने लगी ,कि वह रूस से पृथक है।
1991 में जब सोवियत संघ टूटा,तो यूक्रेन ने स्वयं को एक नस्ली घालमेल के साथ अपने आप को भी अलग कर लिया। सोवियत संघ के साथ रहते हुए यूक्रेन में काफी औद्योगिक विकास हुआ। लेकिन आज वह यूक्रेन , रसिया से अलग है। यही बात पुतिन को अक्सर कचोटती रहती थी ।जिसका नतीजा यह था, कि 2014 में रूस ने क्रीमिया पर चढ़ाई कि, उसे अपने में मिला लिया ।और आज फिर उन सारे इलाके जहां आज भी काफी रूसी बोलने वाले लोग रहते हैं, उसे अपने साथ मिलाने पर आमादा है ..पुतिन।
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