मकर सक्रांति को लेकर बाजारों में बढ़ी रौनक, तिलकुट और चूड़ा खरीद रहे हैं लोग

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नवादा /रामजी प्रसाद एवं कुमार विश्वास

मकर संक्रांति को लेकर बाजारों में रौनक बढ़ गई है ।तिल ,चूड़ा सहित अन्य सामग्री खरीदने के लिए बाजारों में लोगो की भीड़ उमड़ पड़ी है ।बता दे कि इस साल 15 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाएगा ।

मकर सक्रांति पर्व को लेकर तिलकुट बनाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है।आइए हम बताते है कि तिलकुट कैसे बनाया जाता है।

तिलकुट बनाने से पहले तिल को अच्छी तरह से भुजाई किया जाता है उसके बाद चीनी का पाग बनाया जाता है पाग बनाने के बाद उसे मोटे लरक्षे में तब्दील किया जाता है लरक्षे जब सूख जाता है तो उसे गोला बनाकर गर्म कढ़ाई में तिल में उसे मिलाकर गोले को काटा जाता है उसके बाद उस गोले की ठुकाई की जाती है तभी तैयार होता है तिलकुट।

आइए बताते हैं कि मकर सक्रांति पर लोग तिलकुट का सेवन क्यों करते हैं।


मान्यता है कि मकर संक्रांति पर तिल और तिलकुट खाने की भी परंपरा है। ज्‍योतिषीय कारणों के मुताबिक तिल का सीधा संबंध शनि से है। यही वजह है कि मकर संक्रांति के दिन तिल और तिलकुट खाने का रिवाज है। इससे शनि, राहू और केतु से संबंधित सारे दोष दूर हो जाते हैं।


तिल और गुड़ बहाने का है रिवाज


मकर संक्रांति के मौके पर जहां कई जगहों पर खिचड़ी खाने की परंपरा है। वहीं कुछ जगहों पर तिल-गुड़ को प्रवाहित करने का भी रिवाज है। मान्‍यता है कि ऐसा करने से व्‍यक्ति को हर तरह के कष्‍ट से मुक्ति मिलती है।


दही-चूड़ा तिलबा (तिल का लड्ड) की परंपरा


मकर संक्रांति प्रकृति की आराधना का पर्व है जो सूर्य के उत्तरायण होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यही कारण है कि कड़ाके की ठंड में लोग सूर्योदय से पूर्व स्नान करके सूर्य को अर्घ्‍य देते हैं। इसके बाद तिलाठी (तिल के पौधे का ठंडल) जलाकर खुद को गर्म करते हैं और पहले दही-चूड़ा तिलबा (तिल का लड्ड) खाते हैं।

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मकर सक्रांति को लेकर बाजारों में बढ़ी रौनक, तिलकुट और चूड़ा खरीद रहे हैं लोग

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