लेखिका /निधि चौधरी
जन जन के मन के नायक है ख़ाकी वाले।
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कर्तव्यों को लिए चला , मानवता की परिभाषा है,
सुख सुविधा को त्यागे,जन सेवा इनकी अभिलाषा है।
सिवा देश के दूजा इनका कोई परिवार नहीं,
ना है कोई छुट्टी, इनका कोई इतवार नहीं।
स्वाभिमान व कीर्तिमान के परिचायक है ख़ाकी वाले,
जन जन के मन के नायक हैं ख़ाकी वाले।
इंसानियत की सुन्दर पहचान बांटने निकलें है,
पैर ज़मी पर है लेकिन आसमान बांटने निकलें है।
छुपा लिया है दर्दो अपने मुखड़े का इसने,
फिर देखो ये कैसे मुस्कान बांटने निकलें है।
सत अहिंसा के संदेशों के वाहक है ख़ाकी वाले,
जन जन के मन के नायक है ख़ाकी वाले।
इनकी ना होली,ईद न कोई दिवाली है,
इनसे ही शांति सुख, इनसे ही तो खुशहाली है।
जन जन की रक्षा को सीने पर गोली खातें है,
जान हथेली पर रख कर मृत्यु से भिड़ जातें है।
जुल्म सितम वालो के खलनायक है ख़ाकी वाले,
जन जन के मन के नायक है ख़ाकी वाले।
हिन्दू, मुस्लिम सिख ईसाई ना, ये बस इंसान है,
हर पल, हर क्षण इनका बस देश पे ही कुर्बान है।
देश ही इनकी पूजा,और देश ही इनका धाम है,
ऐसे वर्दी को करतें हम भी नित नित प्रणाम हैं।
शांति और सद्भावना के दायक है ख़ाकी वाले,
जन जन के मन के नायक है ख़ाकी वाले।
ना जाने इस ख़ाकी पर अब तक कितने ही लाल मिटे
हो गई तन्हा बहना की राखी माँ के कितने जान लुटे
कांधे पर चढ़ कर जिसे खेलना था होली उसके
उस नन्हे बेटे के ही कांधे चढ़ कर लाल चले।
बलिदानों की गाथा कहते एक कथानक है ख़ाकी वाले,
जन जन के मन के नायक है ख़ाकी वाले।