दर्पण को देखा तूने जब जब किया श्रृंगार फूलों को देखा तूने। जब जब आई बहार एक बदनसीब हूँ मैं मुझे नहीं देखा एक बार
सूरज की पहली किरनों को देखा तूने अलसाते हुए रातों में तारों को देखा सपनों में खो जाते हुए यूँ किसी न किसी बहाने। तूने देखा सब संसार
काजल की क़िस्मत क्या कहिये नैनों में तूने बसाया है आँचल की क़िस्मत क्या कहिये तूने अंग लगाया है हसरत ही रही मेरे दिल में बनूँ तेरे गले का हार
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