शायरी : सुनो ❤️साहिबा

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सुनो ❤️साहिबा

उठा लो दुपट्टे को ज़मीन से

कहीं दाग़ न लग जाए

पर्दे में रखा करो चेहरे❤️ को
अपने
जग में कही आग?न लग जाये…गर्ग जी

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बोल उठे लफ्ज किताबो से…..
बोल उठे लफ्ज किताबो से
तुमसे मिलना तो है मुश्किल
फिर क्यों प्यार झलकता है आंखों से
तुमसे मिलना तो है मुश्किल फिर क्यो प्यार झलकता है आखो से

दिल से चाहा था तुम्हें
दिल से चाहा था तुम्हें
यकीन नही तो पूछ लो इन आंखों से
यकीन नही तो पूछ लो इन आँखों से

मैं मुसल्सल नशे में रहता हूं
मैं मुसल्सल नशे में रहता हूं
क्यूं पिलाई थी तुमनें शराब मुझे आंखों से
क्यो पिलाई थी तुममें शराब मुझे आखों से

तुमसे दूर रहना…
तुमसे दूर रहना
लगता है मुझे खराब इन आंखों से…
लगता है खराब इन आँखों से

ख़त के पुरजे कर दो लाख..
खत के पुरजे कर दो लाख
फिर भी ढलकता है जवाब तुम्हारी आंखों से फिर भी ढलकता है जवाब तुम्हारी आँखों से

हमें मालूम है..
खत को शोख ने नहीं पकड़ा तुमने ..
हमे मालूम है खत को शोख से नही पकड़ा तुमने
अब भी प्यार झलक रहा है तुम्हारी इन आँखों से…..अब भी प्यार झलक रहा है तुम्हारी इन आँखों से
लेखक / गर्ग जी






शायरी : सुनो ❤️साहिबा