बिहार :अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बंद करे नीतीश सरकार : प्रवीण गोविन्द

बेहतर न्यूज अनुभव के लिए एप डाउनलोड करें

पटना ब्यूरो, पटना।

प्रेस क्लब ऑफ इंडो-नेपाल के अंतर्राष्ट्रीय संस्थापक अध्यक्ष सह सूबे के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण गोविन्द ने बिहार के अपर पुलिस महानिदेशक नैयर हसनैन खान के सर्कुलर जिसमें सोशल मीडिया पर अधिकारियों, नेताओं, मंत्रियों यानी माननीयों के खिलाफ आपत्तिजनक, अभद्र और भ्रांतिपूर्ण टिप्पणियों को साइबर अपराध मानते हुए कार्रवाई की बात कही गई है पर कहा है कि यह सोशल मीडिया की स्वतंत्रता को खत्म करने की साजिश है। बिहार सरकार का यह आदेश डॉ जगन्नाथ मिश्रा के दौर के कुख्यात 1982 के प्रेस बिल की याद दिला रहा है। सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बंद करे।






फिर कैसे इसे प्रेस सेंशरशिप की कोशिश न मानी जाए

संस्थापक अध्यक्ष श्री गोविन्द ने कहा है कि ये सर्कुलर दरअसल सिर्फ सोशल मीडिया के बारे में नहीं है, इसमें इंटरनेट का जिक्र किया गया है। गौर करें तो आज कोई टीवी चैनल हो या अखबार उसका डिजिटल प्लेटफॉर्म होता ही है। कारण, आम जनता मोबाइल के जरिए आसानी से उन कंटेंट तक पहुंच सके। फिर कैसे इसे प्रेस सेंशरशिप की कोशिश न मानी जाए। आखिर 39 साल बाद जगन्नाथ मिश्र के रास्ते पर नीतीश कुमार क्यों बढ़ रहे हैं।

नीतीश सरकार की मंशा पर उठ रहे हैं सवाल

प्रेस क्लब के अध्यक्ष ने आगे कहा है कि ये सर्कुलर कानून और संविधान के प्रावधानों पर कितना खरा उतर पाएगा, ये अलग विषय है। पर नीतीश सरकार की मंशा पर सवाल जरूर उठ रहे हैं।
श्री गोविन्द ने कहा है कि अगर माननीयों के खिलाफ अभद्र या अमर्यादित टिप्पणी होती है तो सदन में प्रिविलेज मोशन लाने का प्रावधान है। आईपीसी औऱ सीआरपीसी की धाराएं पहले से लागू हैं। फिर ये बचकाना हरकत क्यों हुई है। ऐसे में जब महाराष्ट्र की उन दो बच्चियों की टिप्पणी पर हुई गिरफ्तारी से मचे भूचाल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66-ए को ही निरस्त कर दिया था। जो बातें इस सर्कुलर के मुताबिक अपराध के दायरे में है उसे श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में 2015 में ही असंवैधानिक करार दिया जा चुका है। 66-ए के तहत कंप्यूटर संचार सेवाओं और कंप्यूटर के जरिए प्रसारित वैसी हर टिप्पणी को गैर कानूनी बताया गया था जिससे किसी का अपमान हो, आपसी दुश्मनी बढ़े, धमकी दी जाए या कोई और प्रतिकूल टिप्पणी की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस हिसाब से किसी भी टिप्पणी की व्याख्या 66ए के दायरे में की जा सकती है। अंत में इस धारा को ही हटा दिया गया। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा है कि नीतीश कुमार तो इमरजेंसी की आग में तप कर निकले हुए नेता हैं, फिर वैचारिक बुनियाद को ताखे पर रखने की क्या ज़रूरत आन पड़ी।






[the_ad id="71031"]

बिहार :अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बंद करे नीतीश सरकार : प्रवीण गोविन्द

error: Content is protected !!