प्रस्तुति/कुमार राहुल
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की कल तक कह रहे थे 96घंटे तक लड़ सकते हैं ,लेकिन 48 घंटे से पहले ही उसने रूस को खबर भेज दिया, कि हम बातचीत को तैयार है। लगभग डेढ़ दिन के लड़ाई के बाद ,137 लोगों की मौत और भारी तबाही ने जेलेंस्की को घुटने पर ला दिया । यूक्रेन किसी भी हालत में रूस से लड़ने की स्थिति में नहीं था ,लेकिन उन्हें लग रहा था, कि शायद नाटो देश, अमेरिका उसकी मदद करेगा, लेकिन सभी देश केवल गीदड़ भभकीया देते नजर आए। प्रतिबंधों की घोषणा करते रहे, कोई यूक्रेन की मदद को नहीं आया। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की जो पहले कॉमेडियन थे, आज दुनिया के सामने एक जोकर बने हुए नजर आ रहे हैं।
सभी देशों की अपनी अपनी आर्थिक मजबूरियां हैं विकसित देशों ने भी जो प्रतिबंध लगाए हैं उनका कोई खास असर रसिया पर होता नहीं दिख रहा है अमेरिका ने रूस के दो बैंकों को प्रतिबंधित किया है, लेकिन असर यह है, कि रिटेल ऑपरेशन से इसका लेना देना ही नहीं है। 11.6 अरब डॉलर की परियोजना नॉर्ड स्ट्रीम दो गैस पाइप लाइन पर जर्मनी ने रोक लगाई है ,रोक अस्थाई है ।हालत सुधरते ही हट सकती है। इससे जर्मनी को भी लाभ है।
ब्रिटेन ने भी दिखावे के लिए 5 रूसी बैंकों और 3 रूसी अरबपतियों पर पाबंदी लगाई है जिसका असर लगभग नहीं के बराबर रूस की इकोनामी पर पड़ने वाला है। ऐसा नहीं कि इसका असर केवल रूस पर ही पड़ेगा ,रूस भी इसका करारा जवाब दे सकता है। एक बार उसके मन में यह आ जाए, कि अब खोने को कुछ नहीं है, तो उसके पास ही पश्चिम को नुकसान पहुंचाने के तरीके की भी कमी नहीं है।
वह पश्चिम को अनाज, उर्वरक ,टाइटेनियम, एलमुनियम, निकेल आदि की सप्लाई पर रोक लगा सकता है। और तेल ,गैस के निर्यात पर रोक लगाई जाने वाली रोक की बात तो अभी रहने ही दीजिए ।लेकिन दुनिया का सबसे बड़ा फ़र्टिलाइज़र निर्यातक होने के नाते अगर उसने इस पर पाबंदी लगा दी, तो पूरी दुनिया में खाद्य पदार्थों की कीमतें आकाश छूने लगेगी। पश्चिम एयरलाइंस एशिया की ओर जाने वाली विमान पर पाबंदियां लगाकर, अमेरिका और यूरोप के लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
पहले ही कीमतों की उछाल से जूझ रही दुनिया के लिए यह बहुत महंगा साबित हो सकता है। इसलिए सभी देश छोटे-मोटे आर्थिक प्रतिबंधों को लगाकर चुप बैठे है। कोई नहीं चाह रहा है ,कि उसके देश की आर्थिक हालत बिगड़े, क्योंकि कोरोना ने पिछले 2 सालों में सभी देशों को आर्थिक तबाही के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है ।इसलिए यूक्रेन को ना आर्थिक ना मिलिट्री सपोर्ट के रूप में कोई मदद मिल सकी।
यूएनओ की स्थिति तो और भी दयनीय है वह सिर्फ मीटिंग कर रहा है। इस लड़ाई में सबसे खराब स्थिति भारत की है ,उभरते चीन के कारण ,भारत अमेरिका के काफी नजदीक दिख रहा है। लेकिन वर्षों से भारत रूस का एक स्ट्रैटेजिक पार्टनर रहा है। यहां भारत को संतुलन बनाना बड़ा मुश्किल होता दिख रहा है। और नुकसान की कल्पना अंतहीन है ।भारत यूक्रेन से 70% और रूस से 20% सूरजमुखी तेल का आयात करता है, जिसका असर होना तय है। क्रूड ऑयल का 10% महंगा होना 1.13 लाख करोड़ का भारत को झटका है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत उछाल लेने लगी है, क्योंकि रूस और यूक्रेन कि ग्लोबल हिस्सेदारी 25% है गेहूं के ट्रेड में ।
दुनिया के 20% मक्के की वैश्विक बिक्री रूस और यूक्रेन ही करते हैं। इन-दो दिन के लड़ाई के अंदर ही सोने की कीमत में 5 फ़ीसदी का उछाल आ गया है। जेलेंस्की के नाटो में शामिल होने के सपने , और अमेरिका के झूठे वादे और घटते वैश्विक प्रभाव के कारण दुनिया को यह युद्ध देखना पड़ रहा है और आर्थिक संकट झेलना पड़ रहा है, 2 दिनों के भीतर पुतिन की सेना पूरे यूक्रेन को कब्जा कर लेगी ,जेलेंस्की को सत्ता छोड़ना ही पड़ेगा ।रूस दुनिया के सबसे बड़ी महाशक्ति बनकर उभरेगी, साथ ही एक बात और भी तय है कि कोई भी महाशक्ति कभी भी किसी देश को इस तरह से हड़प सकता है। भारत सहित हमारे पड़ोसियों को भी ऐसी ही चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।