बजी चुनावी डुग डुगी (व्यंग्य)

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डॉ सजल प्रसाद


लो भइया ! ई कोरोना काल में ही बज गई है चुनावी डुगडुगी .. असेम्बली इलेक्शन की … अउर काहे की बजेगी डुगडुगी ! लग गए हैं सब पार्टी के आलाकमान फेंटा बाँध के ..कोरोना अपनी जगह अउर इलेक्शन अपनी जगह ! गाँव में सियासत की अच्छी समझ रखने वाले पचहत्तर वर्षीय नथुनी ठाकुर चौपाल पर बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाते हुए बड़बड़ा रहे थे। उनकी बड़बड़ाहट को आसपास बैठे लोगों ने भी सुना।

कल्लू पासवान ने छेड़ दिया तो उन्होंने पहले हुक्का का एक कश खींचा और चालू हो गए ऑल इंडिया रेडियो की तरह ..
” आब जे सत्ता में होगा … जे कर सरकार होगी … ऊहे न अगुवा होगा । सो, बाजी मार ले गइलन। ताल ठोंक के वर्चुअल रैली करके निकल गइलन … गाँव के बाँस झाड़ में बहत्तर इंची के टीवी लटका के ..चेहरा चमका के ….ढेर बात बुझा के…..’जल्दी ‘फिर मिलेंगे’- कही के निकल गइलन।”
अपने दादा की उम्र के नथुनी ठाकुर की बातें सुनकर कल्लू को मजा आ रहा था। इसलिए उसने जानबूझकर पूछा – ” ई वर्चुअल रैली का होता है दद्दा ?

पहले तो नथुनी ठाकुर ने माथा खुजाया फिर कुछ सोचते हुए कहा – ” अरे ! छोड़ ई सब बात के तू .. हमर गप्प सुन .. विपक्षी पार्टी में सुगबुगाहट बढ़ गईल त’अ पिनका गाँव में नेता जी के भी माथा चकरा गईल …कर्जकर्ता के समझौले रहिले … अरे, कुछ नहीं सनीमा दिखाए खातिर टीवी लगवले है … आप भी यही बात जनता को बुझाइए। इससे ई होगा कि सनीमा के इंतज़ार में जनता जुटेगी। लेकिन, खाली विज्ञापन दिखाया जाएगा तो जनता बाद में भड़क जाएगी। “
नथुनी ज्ञान बांच रहे थे – ” अउर उधर, रजधानी में आलाकमान को कुछु नहीं बुझाया तो रैलिये का विरोध करने का तरकीब ढूंढ निकाला। “

बगल में बैठे पचास वर्षीय अमज़द अली अंसारी ने पूछा – ” अच्छा ! ई बताइए नथुनी भाई, इधर जो असल सरकार हैं… हाथ पर हाथ धरकर काहे बैठे हैं ? “
सियासी मिजाज के नथुनी ठाकुर ने अपना नथुना फड़काकर कहा – ” आपको नहीं मालूम ! उ एक्टिव हो गए हैं … कर्जकर्ता से वन टू वन वीडियो कॉलिंग शुरू है …इसी दौरान रुआंसे कर्जकर्ता कहि रहे थे कि इस मामले में हम पिछड़ गए “
अमज़द को मुँह ताकते देख उन्होंने कहा – “तब जानते हैं सरकार ने क्या कहा ?”
” क्या ! ” – अमजद ने पूछ लिया।
“अरे, सरकार ने सब कर्जकर्ता से कहा … कोनो बात नहीं ! हम तो इहाँ बड़के भईवा हैं न … ! दस्तूर है …छोटे को पहिले मौका मिलना ही चाहिए न ! ” – नथुनी ने जैसे सरकार बनकर ही कहा और फिर समर्थन भी करते हुए कहा – ” ठीके कह रहे हैं आलाकमान ! “

फिर नथुनी ने अपनी मूँछ पर ताव दिया। यह देख कल्लू मुस्काया और फिर उकसाया – ” दद्दा ! कुछ और पार्टी के बारे बताइए ना ! “
बड़ी देर से चौपाल के चबूतरे पर बैठे नथुनी ने पाँव खोला फिर पालथी मारकर सीना ताने बैठे और शुरू हो गए –
” मौसम विज्ञानी पार्टी काहे पिछड़ती ! जुबा नेता जी ढेर टी शर्टवा में का जाने क्या प्रिंट करा के बँटवइले हैं …. जेतना जिला में दावा बनता है ओतने जिला के कर्जकर्ता से मोबाइले पर फेस टू फेस बतिया रहिले हैं ….. ई बार केतना सीट मिलेगा, कहना मुश्किल है।”

कल्लू के इशारे पर उसका दोस्त जुब्बा सहनी ने हिचकते हुए पूछा – ” दद्दा ! अपनी पार्टी के बारे में बताइए ना !”
लगा जैसे जुब्बा ने नथुनी ठाकुर की दुखती रग पर हाथ रख दिया।
” का करल जाई, हो बबुआ ! सबसे पुरान पार्टी त’अ इहाँ आब पिछलग्गू पार्टी हो गइलन ! ई पार्टी के नेतवन सब तो अभियो पुरने राज के याद में अलसइले रहिले हैं। इनके पजामा-कुर्ता के इस्तरी कहियो न टूटल बबुआ ! नेतवन त’अ नेतवन ई पुरान पार्टी के कर्जकर्ता के भी ऊहे ठसक रहेला बबुआ ! “

नथुनी को बहुत दिनों के बाद किसी ने उसकी पार्टी की याद दिला दी तो लगातार चालू रहा – “गाँधी बाबा के काल में तो इहे एकेगो पार्टी रहेला …! अरे ! का कहीं ! नब्बे तक त’अ मिसिर जी, झा जी, दूबे जी, सिंह जी के अइसन राज रहे कि हमारी पार्टी के नेतवन सब के तूती बोलत रहे ! …. ऊ ज़माना में बगल में एकाध गो नेताईन के बैठावे के फैशन रहिले, ओ बबुआ ! नेताईन के भी लटका-झटका खूब रहे ! जौन नेता के निकट जेतना खूबसूरत नेताईन रहेला … उनकर खेमा में ढ़ेर मर्द कर्जकर्ता भौंरा नियन मंडरौते रहिलन।”

जुब्बा और कल्लू यही तो चाहता था। कल्लू ने शरारत भाव से पूछ लिया – ” दद्दा ! आप भी तो तब गबरूं जवान रहे होंगे?”
यह सुनकर अपनी मूँछ पर दोनों तरफ हाथ फेरकर बूढ़े नथुनी ठाकुर ने हुक्का गुड़गुडाया और जैसे पुराने ख्यालों में खो गया – ” ठीक कह रहे हो बबुआ ! उ बखत हम मंत्री जी के भी बहुते करीब थे … ढ़ेर किस्सा है … पर, उ सब परदे में ही रहे दो। “
बगल में बैठे अमज़द अली अंसारी भी अब मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।

लेखक © डॉ. सजल प्रसाद
एसोसिएट प्रोफेसर व
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज बिहार , वरिष्ट पत्रकार भी है

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