कविता :व्यथा – डॉ सजल प्रसाद की कविता समीक्षा सहित

बेहतर न्यूज अनुभव के लिए एप डाउनलोड करें

व्यथा
••••••
ज़मीन की छाती फटती है
आसमान विलाप करता है
बादल तड़प कर रह जाता है

सूरज दुःख में जल जाता है
चाँद का दाग भी दिख जाता है
तारों का सितारा डूब जाता है

पतझड़ में बरगद सिसकता है
नदी रुग्ण हो जाती है
समन्दर भी किनारे रोता है

यहाँ कौन .. कितना है बच पाया
हरि कथा-हरि अनंता की मानिंद है
सबकी व्यथा-कथा

कोई ज़ार-ज़ार रोता है
कोई सिसक कर रह जाता है
कोई नैन ‘सजल’ कर सह जाता है।

__ डॉ. सजल प्रसाद
© कॉपीराइट

हिंदी साहित्य के आलोचक / समीक्षक एवं पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना में स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डाॅ.विनोद कुमार मंगलम् ने आज फेसबुक पर लिखी मेरी ‘व्यथा’ शीर्षक कविता पर त्वरित समीक्षात्मक टिप्पणी की .. रुचि हो तो, आप भी पढ़िए ….. !
डाॅ सजल समकालीन साहित्य में एक ऐसा नाम है जो मशहूर तो व्यंग्य लेखन के लिए हो रहे हैं, लेकिन उस विधा की ऊर्वर ज़मीन उनकी कविताएँ एवं ग़ज़लें हैं जहाँ प्रयोग के अनूठे बिंब दिखाई पड़ते हैं।
इस लघु कविता/ग़ज़ल में जो सबसे ध्यान देने वाली बात है वह यह कि शीर्षक “व्यथा” को रचनाकार ने कई नामों से समीकृत किया है। जैसे-छाती फटना, विलाप, तड़प, दुःख, दाग, सितारा डूबना, सिसकना, रुग्ण, ज़ार-ज़ार रोना तथा नेत्रों का सजल होना।
दूसरी बात, रचनाकार ने अपनी इस रचना में प्रकृति के तमाम उपादानों को समाहित किया है। जैसे- धरती (ज़मीन), आसमान, बादल, सूरज, चाँद, तारे,पतझड़, बरगद,नदी,समंदर इत्यादि।


तीसरी बात गौर करने की है कि कवि ने इस व्यथा को ‘हरि कथा-हरि अनंता’ कह कर उसे सार्वदेशिक, सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वजनिक बना दिया जो रचनाकार की सधी हुई दृष्टि का परिणाम है।
चौथी बात, कवि ने जितने भी अवलंब गढ़े हैं, वे कविता में विश्वास पैदा करते हैं। जैसे-ज़मीन की छाती का फटना, आसमान का विलाप करना, बादल का तड़पना, सूरज का जलना, चाँद के दागों का दिख जाना, तारों के सितारों का डूब जाना, पतझड़ में बरगद का सिसकना, नदी का रुग्ण हो जाना और समंदर का किनारे पर आकर रोना।
अंतिम बात, व्यथा को ” हरि अनंता ” कहकर रचनाकार ने दुख का ‘सामान्यीकरण’ कर दिया है यह कहते हुए–“यहाँ कौन..कितना है बच पाया।”
लाजवाब .. सजल जी ! ■ डाॅ.विनोद कुमार मंगलम्











इन महत्वपूर्ण खबरों को भी पढ़े :

कविता :व्यथा – डॉ सजल प्रसाद की कविता समीक्षा सहित