बेरुखी

बेहतर न्यूज अनुभव के लिए एप डाउनलोड करें

बेरुखी का ये कैसा मंजर है,
जहां चाहत भी अब बेअसर है।
कल तक जो लफ्ज़ फूल थे,
आज उनकी जगह खंजर है।

जिन निगाहों में था प्यार कभी,
अब वो पराए से लगते हैं।
जिन होंठों पर थीं दुआएं मेरी,
अब वो शिकवे बयां करते हैं।

खामोशियां बोलने लगी हैं,
फासले गहरी चोट देने लगे हैं।
तन्हाई का ये सफर कैसा है,
जहां यादें भी दर्द देने लगी हैं।

बेरुखी की इस सर्द हवा में,
दिल का मौसम भी बदल गया।
जो कभी महकता गुलशन था,
अब वीरान सा कोई जंगल हुआ।

लेकिन हम भी अब खामोश रहेंगे,
न सवाल करेंगे, न जवाब देंगे।
बेरुखी का सबक ये सिखा गया,
कि मोहब्बत में भी, खुद को संभालेंगे।

बेरुखी

error: Content is protected !!