रोपा रोपनी
(सुरजापुरी कविता)
हर साल सावन महीनार
एकटा सुंदर परब छे धान रोपनी
सुनाछी आज तुमसाक बिच्चन से ले
लहलहाता धानेर, रोपा रोपनीर कहानी।
आषाढ़ खत्म होबार साथ
सावन ले ओसछे रोपा रोपनीर सौगात
झम-झम करे जब मेघ बरसेछे
तब सुनहरा खेतोत, अन्नदाता रोपा रोपछे।
कादोत जब किसानेर सोनार पाँव ला सानछे
तब खेतोत बस धानेर बेहोन नज़र ओसछे
जैसा देवालीत आर ईदोत लोक खुशी मनाछे
धान रोपनीत वासे बेसी, गांवोर लोक झूमे छे।
सैकड़ों मोतीर सा बिच्चन खेतोत बिखराए
धानेर गाछ उठवार इंतेज़ारोत आंख बिछाए
जब हरा-हरा गाछ उठछे धरतीर कोख से
बेहोन बनाछे, हजारों ड़ा छोटो-छोटो गाछ मिलाए।
सावन-भादो महीना हछे किसानेर तने बेहद खास
चिलचिलाता धूपेर बाद जब ओसछे पानी-बरसात
पानी आर कादो देखे ओड़ा घिन नी करछे
बरसात देखे चेहरा खिले जाछे
आर मोनोत भरे जाछे हर्ष-उल्लास!
फिर पानी आर माटीर संगम होछे खेतोत
वाते रोपा रोपछे बांधे गमछा कम्मरोत
मलाई सा मखमली छपर-छपर कादोत
लगाछे एक-एक टा रोपा ले अपना हाथोंत।
तरह-तरह कार गीत गए
“ओसो गे मई ला”
“ओसो रे नुनु ला”
झूमे, नाचे, हांसे-हँसाएं
आषाढ़ से सावन महीना रोपा रोपछे
सबकोई मिले खेतोत हांसछे, गाछे
किसान ला रोपा रोपनी, एकटा उत्सवेर मंदी मनाछे
किसान ला रोपा रोपनी एकटा उत्सवेर मंदी मनाछे!
लेखिका:मिली कुमारी ✍️