टेढ़ागाछ (किशनगंज)विजय कुमार साह
आगामी 26 जनवरी को सरस्वती पूजा होगी। इसे लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में भी चहल-पहल तेज हो गई है। मूर्तिकार मूर्तियों को गढ़ने में अपना श्रेष्ठ देने के लिए जी- जान से जुट गए हैं। मूर्तियों को नई भाव भंगिमाओं के साथ करीने से गढ़ने का कार्य परवान पर है। मिट्टी की जीवंत मूर्तियां तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। प्रतिमा को चार चरणों में तैयार किया जाता है। पहले चरण में लकड़ी और पुआल से मूर्तियों का ढांचा तैयार किया जाता है। दूसरे चरण में मिट्टी से मूर्तियों का मॉडल एवं भाव भंगिमा तैयार किया जाता है। तीसरे चरण में रंग रोगन कार्य एवं चौथे चरण में साज-सज्जा को अंतिम रूप दिया जाता है।

हालांकि मूर्तियों को बनाने और बेचने का कार्य इस इलाके में वर्षों से चल रहा है। लेकिन मौजूदा दौर में मूर्तिकार ज्यादा खुश नजर नहीं आते हैं। इसकी वजह जानने के लिए चिल्हनियाँ पंचायत के सुहिया हाट के मूर्तिकार परमेश्वर साह से बात की तो उन्होंने कहा कि पहले जैसी बात अब रही नहीं। अब तो ज्यादा मेहनत करना पड़ता है पर उस अनुपात में मुनाफा नहीं होता।उन्होंने कहा कि आजकल लोग स्टाइलिस्ट मूर्तियां चाहते हैं।

ज्यादा मेहनत कर नए अंदाज में मूर्तियां गढ़नी पड़ती है। ऊपर से रंग और श्रृंगार प्रसाधनों की बढ़ती कीमत से औसतन कमाई घटी है। हालांकि एक सुखद बात है कि मूर्तियों की बिक्री कई गुना बढ़ गई है। जिसके चलते दाल रोटी भर कमाई हो ही जाती है। जिसके लिए हम अपनी पत्नी के साथ मिलकर मूर्ति बनाते हैं। पिछले वर्ष 65 मूर्तियों की बिक्री हुई थी। इस वर्ष 80 का लक्ष्य है। उन्होंने बताया 1000 से लेकर 5000 तक के कीमत की मूर्तियां तैयार की जाती है। जिसके लिए एडवांस भी मिल जाता है।