किशनगंज :जान जोखिम में डाल -रोजगार के तलाश में पलायन के लिए मजबूर है मजदूर – मुस्ताक आलम

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विजय कुमार साहा

कोरोना महामारी से पूरा विश्व परेशान है। देश में पिछले 4 महीना से लॉकडाउन चल रहा है, इसके बावजूद हजारों लोगों की जान चली गई है।वर्तमान समय में बहुत तेजी से करोना बढ़ रहा है, प्रतिदिन सैकड़ों, हजारों कि मौत हो रही है। सरकार जांच में तेजी लाएं तो और ज्यादा कोरोना पॉजिटिव निकल सकता है, लेकिन ऐसी भयावह स्थिति में टेढ़ागाछ के लगभग आधा दर्जनों पंचायत के लोगों ने मजदूर रोजगार की तलाश में निकल रहे हैं।

जन अधिकार पार्टी के प्रखंड अध्यक्ष मुस्ताक आलम ने बताया कि शायद याद होगा मोदी जी ने लॉकडाउन के दौरान गरीब कल्याण रोजगार योजना के तहत लोगों को गांव में ही रोजगार देने की बात किए थे, दूसरी तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रोजगार देने के नाम पर सत्ता में आए, यहां तक कि बेरोजगारी भत्ता के लिए बिहार के युवाओं से रजिस्ट्रेशन करवाया गया।


परंतु सरकार ना रोजगार दे रही है ,और बरोजगारी भत्ता, कोरोना महामारी में करोड़ों लोगों का रोजगार छीना गया है।
सरकार सिर्फ कोरोना महामारी में 10 किलो चावल और प्रति राशन कार्ड पर 1 किलो दाल देकर आत्मनिर्भर कह कर छोड़ दिया।
आखिर ऐसी स्थिति में जीवन यापन के लिए मजदूर कुछ तो करेगें ही? इन मजदूरों को कोरोना से डर होते हुए भी काम करने के लिए मजबुर हैं, क्योंकि घर परिवार बाल बच्चे पालना है।
सरकार चाहती तो गांव में मनरेगा योजनाओं के तहत रोजगार दे सकती थी, लेकिन मनरेगा में कम मजदूरी होने व समय पर मजदूरी नहीं मिलने के कारण पालन पोषण करना मुश्किल हो जाता हैं, किशनगंज जिला के टेढ़ागाछ मनरेगा में काम करने वाले लोगों को महीनों से मजदूरी नहीं मिला है,सरकार ध्यान देती तो रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता।
अगर ऐसी स्थिति बनी रहेगी तो प्रवासी मजदूर की हालत तो दयनीय है ही और खराब हो जाएगी।
देश में बेरोजगारों की फौज उमड़ रही है, रोजगार नहीं मिलने के कारण हजारों लोग आत्म हत्याएं कर रहे हैं, पर सरकार चिंतित नहीं है।
साथियों ,
नौजवान भाइयों अपने अधिकारों के लिए आगे आएं, रोजगार मांगना पड़ेगा और लड़ना पड़ेगा ,सड़कों पर संघर्ष करना पड़ेगा,
इस निकम्मी सरकार के खिलाफ और अपने अधिकार के लिए। श्री आलम ने कहा कि

नफरत नहीं अधिकार चाहिए! शिक्षा और रोजगार चाहिए!!

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किशनगंज :जान जोखिम में डाल -रोजगार के तलाश में पलायन के लिए मजबूर है मजदूर – मुस्ताक आलम

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