बिहार :,प्रकृति का महापर्व छठ ,घर से लेकर घाट तक ऐसी है परम्परा

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किशनगंज /विजय कुमार साह

लोकआस्था का महापर्व छठ, घर से लेकर घाट तक ऐसी हैं परंपराएं ।

महापर्व में ना कोई छोटे बड़े का भेद ना ही अमीरी गरीबी का फासला ।लोकगीतों से वातावरण भक्तिमय तो होता ही है साथ ही इस पर्व में प्रकृति का भी समावेश होता है ।हर वो वस्तु जो हमे प्रकृति के करीब ले जाती है उसका उपयोग इस महापर्व में किया जाता है ।बता दे कि खरना का प्रसाद ग्रहण करने के साथ 36 घंटे का कठिन निर्जला छठ उपवास शुरू हो जाता है।जो की आज मनाया जा रहा है ।इसके बाद शुक्रवार को अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। जबकि शनिवार को उदयीमान सूर्य के अर्घ्य के साथ व्रत की पूर्णाहुति होगी।और छठ व्रत करने वाली व्रतिया पारण करेंगी।


नहाय-खाय के दिन ये होते हैं भोग


चार दिन के इस महापर्व में पहले दिन नहाय-खाय होता है। इस दिन व्रती नहा कर विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाती हैं और छठी मां को भोग लगाकर फिर उस प्रसाद को खुद ग्रहण करते हैं। कहते हैं कि मां को भोग लगने के बाद इन व्यंजनों का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है और फिर यहीं से शुरुआत हो जाती है इस महापर्व की।

ठेकुआ: छठ पूजा का मुख्य प्रसाद

छठ पूजा में कई तरह के भोग लगाए जाते हैं। इनमें सबसे प्रमुख है- ठेकुआ।छठ पूजा के प्रसाद के प्रतीक ठेकुआ को गेहूं के आटे से बनाते हैं। इससे छठी मैया को अर्घ्य देने की परंपरा है। ठेकुआ को सांचे पर ठोक कर बनाया जाता है, जिससे इस पर अलग-अलग आकृतियां बन जाती है।भक्तों में हर्षोल्लास की पराकाष्ठा रहती है।श्रद्धालु छठ घाटों की तैयारी चार दिन पूर्व से करने लगते हैं।टेढ़ागाछ प्रखंड क्षेत्र में 18 स्थानों पर छठ घाटों का निर्माण हो रहा है जहाँ पर प्रशासनिक निगरानी रहेगी।गुरुवार को सुहिया में रेतुआ नदी में जेसीबी से छठ घाट निर्माण किया गया।

बिहार :,प्रकृति का महापर्व छठ ,घर से लेकर घाट तक ऐसी है परम्परा

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