बिहार :यह फर्क चश्मे का है हुजूर…!

बेहतर न्यूज अनुभव के लिए एप डाउनलोड करें

हमारे अतिथि संपादक प्रवीण गोविन्द के साथ सुपौल के ब्यूरो चीफ अमलेश कुमार झा की रिपोर्ट।

सुपौल : यह फर्क चश्मे का है। अधिकारियों को समस्याएं नहीं दिखती, जबकि तस्वीर चीख-चीख कर कह रही है कि हमको यहां से उठाने की स्थायी व्यवस्था करो। हुजूर को दो ही बातें आती है पहला समस्या नहीं है और दूसरा समाधान कर लिया जाएगा। इस खबर के साथ जो तस्वीर हैं उनमें समस्या देखिए…!

कल्पना कीजिए लोगबाग कैसे आते-जाते होंगे। सूबे में सबसे स्वच्छ शहर का तमगा मिलने व खुद की पीठ खुद थपथपाने से क्या होगा। कोई कुछ भी कह ले लेकिन हकीकत यही है कि बुनियादी नागरिक सुविधाओं की उपलब्धता का स्वरूप अधिकारियों को कटघरे में खड़ा करता है।

सुपौल-वीणा रोड के बगल में कूड़े के पहाड़ियों से जो फिसलन भरी कीचड़ सड़क पर फैल रही है उससे भयंकर दुर्गंध उठ रही है। कोई देखने-सुननेवाला नहीं है। कायदे से लोकतांत्रिक संस्था को आलोचना का सम्मान करते हुए जवाबदेही स्वीकारते हुए खुद को दुरुस्त करने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन यहां ऐसा होता नहीं। हां, एक बात और।

निश्चित तौर पर सुपौल का विकास हुआ है। यह भी सच है कि क्षेत्रीय विधायक सह सूबे के ऊर्जा मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव के सतत प्रयास से विकास की गंगा बही है, बह रही है, अभी और बहेगी।नगर विकास व आवास विभाग द्वारा यह आदर्श नगर परिषद घोषित है, लेकिन यह भी सच है कि शहर की गंदगी शहर में ही घूमती रहती है।

अब भला विजेंद्र बाबू तो कूड़ा उठाने नहीं आएंगे। आखिर समाधान के रास्ते क्यों नहीं ढूंढे जा रहे हैं। निश्चित तौर पर स्थिति दुःखद है।

बिहार :यह फर्क चश्मे का है हुजूर…!

error: Content is protected !!