बिहार : पत्रकार संगठनों की बदहाली व धंधेबाज पत्रकारों की बढ़ती तादात चिंता का विषय -प्रवीण गोविंद

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  • छुपाई जा रही है सही खबरें : प्रवीण गोविन्द

पटना ब्यूरो/ पटना

प्रेस क्लब ऑफ इंडो-नेपाल के अंतर्राष्ट्रीय संस्थापक अध्यक्ष सह सूबे के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण गोविन्द ने पत्रकार संगठनों की बदहाली एवं धंधेबाज पत्रकारों की बढ़ती तादात पर गम्भीर चिता व्यक्त की है।

पत्रकार से है मीडिया मालिक से नहीं

पत्रकारों से बातचीत में श्री गोविन्द ने कहा कि धंधेबाज पत्रकारों की बढ़ती तादात
अधिकारियों की दलाली करने में लगे रहते हैं। सिस्‍टम भी इनको ही असली पत्रकार मानता है, क्‍योंकि यह किसी भी अधिकारी-नेता के कार्यालय में घण्टों बैठकर उसकी इतनी खूबी बता देते हैं, जिसकी जानकारी खुद उस अधिकारी-नेता को नहीं होती है। गदगद अधिकारी-नेता इन्‍हें ही पत्रकार मान लेता है। व्‍यस्‍त पत्रकार के पास इतना टाइम नहीं होता, जो नेता-अधिकारी की खूबी खोजे।






कहने को जो पत्रकार संगठन और पत्रकार नेता हैं, उन्‍हें पत्रकारों की बजाय अपनी दुकानों की चिंता ज्‍यादा रहती है, लिहाजा वो भी उसी में बिजी रहते हैं। इन व्‍यस्‍तताओं के बीच असली पत्रकारों की परेशानियां ज्‍यों की त्‍यों रह जाती हैं। इन्‍हें सुनने वाला कोई नहीं होता है। आज की तारीख में लिखने-पढ़ने एवं दिखने-बोलने वाले पत्रकारों का जुटान समय की मांग है।

उन्होंने कहा कि कुछ ऐसा काम किया जाये ताकि केवल पत्रकारिता की नौकरी तक सिमटे साथियों के किसी परेशानी में आ जाने पर उनकी मदद हो सके। पत्रकारिता के गिरते स्‍तर एवं बदतर होती स्थिति को लेकर चर्चा की जरूरत है। बोले, सुपौल की धरती पर ऐसे तथाकथित पत्रकार हैं, जिन्‍हें एक पैरा भी ठीक ढंग से लिखने नहीं आता है, लेकिन वो सिस्‍टम की नजर में बड़ा पत्रकार होते हैं। आवश्यकता यह भी है कि मुश्किल में आने वाले पत्रकार साथी की आर्थिक मदद की जाए। जमीन से जुड़े पत्रकारों को सबकुछ भूलकर एक होना होगा। जमीन से जुड़े पत्रकार संगठन के पदाधिकारियों को भी पत्रकार महासंघ की दिशा में पहल करने की आवश्यकता है।

श्री गोविन्द ने कहा कि अपने साथियों के साथ हो रहे अन्याय का विरोध कीजिए, बैनर व यूनियन से ऊपर उठकर। पहले हम पत्रकार हैं। पत्रकार से मीडिया है, न कि मालिक से।बोले, जनता को ग़लत सूचनाएं परोसी जा रही हैं,सही समाचारों को छुपाया जा रहा है, किसानों,मज़दूरों,छात्रों,गरीबों के हक व अधिकार की बात करने के बजाए सत्ताधीशों की भाषा बोली जा रही है। मंहगाई,बेरोज़गारी पर चर्चा नहीं होती।






बिहार : पत्रकार संगठनों की बदहाली व धंधेबाज पत्रकारों की बढ़ती तादात चिंता का विषय -प्रवीण गोविंद